Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान ३ उद्देशक १
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नरक के नैरयिकों की उत्कृष्ट स्थिति तीन सागरोपम कही गई है। तीसरी वालुकाप्रभा नरक के नैरयिकों की जघन्य स्थिति तीन सागरोपम कही गई है।
पंचमाए णं धूमप्पभाए पुढवीए तिण्णि णिरयवाससयसहस्सा पण्णत्ता। तिसु णं पुढवीसु णेरइयाणं उसिण वेयणा पण्णत्ता तंजहा - पढभाए दोच्चाए तच्चाए। तिसु णं पुढवीस णेरड्या उसिण वेयणं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति तंजहा - पढमाए दोच्चाए तच्चाए। तओ लोए सपक्खिं सपडिदिसिं पण्णत्ता तंजहा - अपइट्ठाणे णरए, जंबूहीवे दीवे सव्वट्ठसिद्धे महाविमाणे। तओ लोए समा सपक्खिं सपडिदिसिं पण्णत्ता तंजहासीमंतए णं णरए, समयक्खेत्ते ईसिपब्भारा पुढवी। तओ समुद्दा पगईए उदगरसेणं पण्णत्ता तंजहा - कालोदे, पुक्खरोदे, सयंभुरमणे। तओ समुद्दा बहुमच्छकच्छभाइण्णा पण्णत्ता तंजहा - लवणे, कालोदे, सयंभुरमणे॥७३॥
कठिन शब्दार्थ - पच्चणुब्भवमाणा - अनुभव करते हुए, समा - समान, सपक्खि - दोनों पसवाडों में समान, सपडिदिसिं - सभी दिशाओं में समान, सव्वट्ठसिद्धे महाविमाणे - सर्वार्थसिद्ध नाम का महाविमान, सीमंतए णरए - सीमंतक नरकावास, समयखेत्ते - समय क्षेत्र, ईसिपब्भारा पुढवी - ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी, पगईए - स्वभाव से ही, उदगरसेणं - उदग रस वाले, बहुमच्छकच्छभाइण्णा - बहुत से मच्छ कच्छपों से भरे हुए। __भावार्थ - पांचवीं धूमप्रभा नाक में तीन लाख नरकावास कहे गये हैं। पहली, दूसरी और तीसरी इन तीन नरकों में नैरयिकों को उष्ण वेदना कही गई है और पहली दूसरी और तीसरी इन तीन नरकों में नैरयिक उष्ण वेदना का अनुभव करते हैं। लोक में तीन स्थान समान यानी एक के ऊपर एक समश्रेणी में रहे हुए दोनों पसवाड़ों में समान तथा सब दिशाओं में समान कहे गये हैं यथा - सातवीं नरक का अप्रतिष्ठान नरकावास, जम्बूद्वीप और सर्वार्थसिद्ध नाम का महाविमान । इन तीनों की लम्बाई चौड़ाई एक लाख योजन की है। इसी तरह लोक में तीन एक के ऊपर एक समश्रेणी में रहे हुए दोनों पसवाड़ों में समान तथा सब दिशाओं में समानं कहे गये हैं यथा - पहली नरक का सीमन्तक नामक नरकावास, समय क्षेत्र यानी अढाई द्वीप परिमाण मनुष्य लोक और ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी यानी सिद्ध शिला। ये तीनों पैंतालीस लाख योजन हैं। तीन समुद्र स्वभाव से ही उदगरस वाले हैं अर्थात् तीन समुद्रों के पानी का स्वाद स्वभाव से ही पानी जैसा कहा गया है यथा - कालोदधि, पुष्कर समुद्र और स्वयम्भूरमण समुद्र । तीन समुद्र बहुत से मच्छ कच्छपों से भरे हुए कहे गये हैं यथा - लवणसमुद्र, कालोदधि समुद्र और स्वयम्भूरमण समुद्र।
विवेचन - पहली, दूसरी, तीसरी पृथ्वी का उष्ण स्वभाव होने से तीनों नरकों के नैरयिक उष्ण
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