Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र
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वेदना वाले हैं अर्थात् ये नैरयिक उष्ण वेदना का अनुभव करते हुए विचरते हैं। नारकी की उष्णता का वर्णन करते हुए उत्तराध्ययन सूत्र के १९ वें अध्ययन की गाथा ४८ में कहा गया है.
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'जहा इहं अगणी उण्हो, इत्तोऽणंतगुणो तहिं "
- यहाँ मनुष्य लोक में अग्नि में जितनी उष्णता है उससे भी अनन्तगुणी उष्ण वेदना नरक भूमि में पाई जाती है।
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लोक में तीन वस्तु एक लाख योजन के प्रमाण से तुल्य है। केवल प्रमाण से ही यहां समानपना नहीं कहा परन्तु 'सपक्खिं सपक्ष - उत्तर और दक्षिण पसवाड़ों में भी समान है तथा 'सपडिदिसिं'सप्रतिदिक् - विदिशाओं में भी समान है। वे ये हैं - १. सातवीं नरक के पांच नरकावासों के बीच में अप्रतिष्ठान नरकावास है २. सब द्वीपों के मध्य में जम्बूद्वीप और ३. पांच अनुत्तर विमानों के मध्य में सर्वार्थसिद्ध विमान है। सीमंतक नाम का नरकावास पहली नरक में पहले पाथडे (प्रस्तट) में ४५ लाख योजन परिमाण वाला है। समय-काल की सत्ता से पहिचाने जाने वाला क्षेत्र समय क्षेत्र - मनुष्य लोक है। वह ४५ लाख योजन का लम्बा चौड़ा है। ईषत्प्राग्भारा - ईषत् - अल्प, आठ योजन की मोटाई और ४५ लाख योजन की लम्बाई चौड़ाई से प्रागभार - पुद्गलों का समूह है जिसका ऐसी ईषत्प्राग्भारा आठवीं ! पृथ्वी है। शेष अन्य पृथ्वियाँ रत्नप्रभा आदि महा प्राग्भारा है क्योंकि पहली पृथ्वी की १ लाख ८०
हजार योजन की मोटाई है। दूसरी १ लाख ३२ हजार योजन की तीसरी १ लाख २८ हजार योजन की, चौथी १ लाख २० हजार योजन की, पांचवीं १ लाख १८ हजार योजन की, छठी एक लाख १६ हजार योजन की और सातवीं पृथ्वी १ लाख आठ हजार योजन की जाड़ी (मोटी) है। विष्कंभ यानी लम्बाई चौड़ाई नरक पृथ्विों के क्रम से १ राजू से प्रारंभ हो कर ७ राजू परिमाण है अथवा थोड़ी नीचे झुकी हुई होने से ईषत् प्राग्भारा नाम है।
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पईए प्रकृति से स्वभाव से उदकरस से युक्त समुद्र क्रम से दूसरा (कालोद) तीसरा (पुष्करवर) और अंतिम (स्वयंभूरमण) है। इन तीनों समुद्रों के पानी का स्वाद साधारण पानी सरीखा है । पहला (लवण), दूसरा (कालोद) और अन्तिम समुद्र (स्वयंभूरमण) जलचर जीवों की बहुलता वाला है। जब कि शेष समुद्र अल्प जलचर जीवों वाले हैं।
तओ लोए णिस्सीला णिव्वया णिग्गुणा णिम्मेरा णिपच्चक्खाण पोसहवासा कालमासे कालं किच्चा अहेसत्तमाए पुढवीए अपइट्ठाणे णरए णेरइयत्ताए उववज्जति तंजहा - रायाणो मंडलिया जे य महारंभा कोडुंबी । तओ लोए सुसीला सुव्वया सग्गुणा समेरा सपच्चक्खाणपोसहोववासा कालमासे कालं किच्चा सव्वट्टसिद्धे महाविमाणे देवत्ताए उववत्तारो भवंति तंजा रायाणो परिचत्तकामभोगा सेणावई
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