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स्थान ३ उद्देशक १
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३. सचित्ताचित्त योनि - योनि किसी भाग में जीव युक्त हो और किसी भाग में जीव रहित हो उसे सचित्ताचित योनि कहते हैं।
देव और नैरयिकों की अचित योनि होती है। गर्भज जीवों की मिश्र योनि (सचित्ताचित्त योनि) और शेष जीवों की तीनों प्रकार की योनियाँ होती हैं। अथवा योनि के तीन भेद इस प्रकार हैं -
१. संवृत्त योनि - जो उत्पत्ति स्थान ढंका हुआ या दबा हुआ हो उसे संवृत्त योनि कहते हैं। २. विवृत्त योनि - जो उत्पत्ति स्थान खुला हुआ हो उसे विवृत्त योनि कहते हैं
३. संवृत्त विवृत्त योनि - जो उत्पत्ति स्थान कुछ ढंका हुआ और कुछ खुला हुआ हो उसे संवृत्त विवृत्त योनि कहते हैं।
- नैरयिक देव और एकेन्द्रिय जीवों के संवृत्त, गर्भज जीवों के संवृत्तविवृत्त और शेष जीवों के विवृत्त योनि होती है। अथवा योनि के तीन भेद इस प्रकार हैं - ..१. कूर्मोन्नता - कूर्म अर्थात् कछुए की पीठ के समान उठी हुई योनि
२.शंखावर्ता - शंख के समान आवर्त वाली योनि और ३. वंशीपत्रिका - बांस के दो पत्ते की तरह संपुट मिली हुई योनि
कूर्मोन्नता योनि ५४ उत्तम पुरुषों (६३ श्लाघनीय पुरुषों में से ९ प्रतिवासुदेव को छोड़ कर) की माता के होती है। शंखावर्ता योनि चक्रवर्ती के स्त्री रत्न श्री देवी के होती है जिसमें जीव उत्पन्न होते हैं
और मरते हैं किन्तु सन्तान के रूप में जन्म नहीं लेते। वंशी पत्रिका योनि सभी संसारी जीवों की माताओं के होती है जिसमें जीव जन्म लेते भी हैं और नहीं भी लेते।
तिविहा तणवणस्सइकाइया पण्णत्ता तंजहा - संखेज्जजीविया असंखेज्जजीविया अणंतजीविया। जंबूहीवे दीवे भारहे वासे तओ तित्था पण्णत्ता तंजहा - मागहे वरदामे पभासे, एवं एरवए वि। जंबूहीवे दीवे महाविदेहे वासे एगमेगे चक्कवट्टिविजए तओ तित्था पण्णत्ता तंजहा - मागहे वरदामे पभासे, एवं धायइखंडे दीवे पुरच्छिमद्धे वि, पच्चत्यिमद्धेवि, पुक्खरवरदीवद्धपुरच्छिमद्धे वि, पच्चत्थिमद्धे वि॥७०॥
कठिन शब्दार्थ - तणवणस्सइकाइया - तृण वनस्पतिकाय, संखेजजीविया - संख्यात जीव वाली, असंखेजजीविया - असंख्यात जीव वाली, अणंतजीविया - अनंत जीव वाली, तित्था - तीर्थ, पुरच्छिमद्धे - पूर्वार्द्ध में, पच्चत्थिमद्दे - पश्चिमार्द्ध में, पुक्खरवरदीवद्ध पुरच्छिमद्धे - पुष्कराद्ध द्वीप के पूर्वार्द्ध में।
भावार्थ - बादर तृण वनस्पतिकाय तीन प्रकार की कही गई है यथा - संख्यात जीव वाली असंख्यात जीव वाली और अनन्त जीव वाली। इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में तीन तीर्थ कहे गये हैं
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