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स्थान ३ उद्देशक १ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 तंजहा - विकुव्वमाणे वा परियारेमाणे वा तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा इड्डिं जुई जसं बलं वीरियं पुरिसक्कार परक्कम उवदंसेमाणे देवे विजुयारं करेजा। तिहिं ठाणेहिं देवे थणियसह करेजा तंजहा - विकुव्वमाणे, एवं जहा विज्जुयार तहेव थणियसई वि॥६५॥ ... .
कठिन शब्दार्थ - तारारूवे - तारे, चलिज्जा - चलते हैं, विकुब्वमाणे - वैक्रिय रूप बनाते समय, परियारेमाणे - परिचारणा (मैथुन सेवन) करते समय, संकममाणे - जाते समय, विजुयारं - बिजली सरीखा रूप, इड्डिं- ऋद्धि, जुइं - द्युति, जसं - यश, बलं - बल, वीरियं - वीर्य, पुरिसकारपरक्कमपुरुषकार पराक्रम को, उवदंसेमाणे - दिखलाते हुए, थणियसहं - स्तनित शब्द। .. भावार्थ - तीन कारणों से तारे चलते हैं यथा - वैक्रिय रूप बनाते समय तथा परिचारणा यानी मैथुन सेवन करते समय और एक स्थान से दूसरे स्थान को जाते समय तारे चलित होते हैं। तीन कारणों से देव बिजली सरीखा रूप करते हैं। यथा - वैक्रिय रूप बनाते समय तथा मैथुन सेवन करते समय और तथारूप यानी साधु के गुणों से युक्त साधुमहात्मा को अपनी ऋद्धि यानी विमान और परिवार की सम्पत्ति, युति यानी अपने शरीर और आभूषणों की शोभा, यश, शारीरिक बल, वीर्य यानी जीव का सामर्थ्य और पुरुषकार पराक्रम को दिखलाते समय देव बिजली सरीखा उद्योत करते हैं। तीन कारणों से देव स्तनित शब्द यानी मेघ की गर्जना के समान शब्द करते हैं। यथा - वैक्रिय करते समय इस तरह जिस प्रकार बिजली सरीखा उद्योत करने का कथन किया है उसी प्रकार मेघगर्जना के लिए भी कह देना चाहिए। .. विवेचन'-'तारों का अपने स्थान को छोड़ना चलित कहलाता है। तीन कारण से तारे चलित होते हैं - १. बैंक्रिय करते हुए २. परिचारणा करते हुए और ३. एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हुए। एक तारे से दूसरे तारे के बीच जो अंतर होता है उसके लिए कहा है - 'तत्थणं जे से वाघाइए अंतरे से जहण्णेणं दोण्णि छावढे जोयणसए उक्कोसेणं बारसजोयणसहस्साई' - दो प्रकार का अंतर होता है - व्याघात रहित और व्याघात सहित। व्याघात रहित (निर्व्याघातिक) अन्तर जघन्य ५०० धनुष उत्कृष्ट दो गाऊ का और व्याघात सहित अंतर जघन्य दो सौ छासठ योजन उत्कृष्ट बारह हजार योजन का है। इन दोनों अंतर में व्याघातिक अंतर महर्द्धिक देव को मार्ग देने से होता है। तारों के चलन आदि तीन सूत्र उत्पात से सूचक है। . वैक्रिय आदि करना अहंकार वाले को ही होता है। वैक्रिय आदि क्रिया में प्रवृत्त और अहंकार के उल्लास वाले को चलन, बिजली और गर्जन आदि भी होता है अतः चलन, बिजली का करना आदि वैक्रिय करने को कारणपणा से कहा हुआ है।
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