Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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. श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 नहीं कह सकते। इसी प्रकार किसी बच्चे का नाम हस्तीमल रख दिया। उसको गजमल नाम से नहीं पुकारा जा सकता। तात्पर्य यह है कि अपनी इच्छानुसार रखी हुई संज्ञा को 'नाम' कहते हैं। ... ... स्थापना के दो भेद हैं - १. सद्भाव स्थापना और २. असद्भाव स्थापना। जिसमें वस्तु का यथार्थ आकार हो उसको सद्भाव स्थापना कहते हैं। जैसे किसी कुम्हार ने मिट्टी का घोड़ा बनाया। घोड़े के आकार रूप चार पैर, कान, पूंछ आदि बनाई यह सद्भाव स्थापना है। और यों ही किसी लकड़ी के टुकड़े को घोड़ा कह देना असद्भाव स्थापना है अथवा जिसमें हाथी की आकृति हो वह सद्भाव स्थापना है। तथा शतरंज आदि में लकड़ी की गोटी को हाथी, घोड़ा आदि कहना। यह असद्भाव स्थापना है। . इन्द्र - 'इदि परमैश्वये' धातु से इन्द्र शब्द बना है। जिसका अर्थ है जो परम ऐश्वर्य सम्पन्न ' हो, उसे इन्द्र कहते हैं। उसके यहाँ तीन भेद किये हैं यथा - १. नाम इन्द्र २. स्थापना इन्द्र और ३. द्रव्य इन्द्र। नाम - संज्ञा मात्र से जो इन्द्र है वह नामेन्द्र अथवा जो सचेतन (जीव) अथवा अचेतन (अजीव) वस्तु का इन्द्र ऐसा अयथार्थ नाम दिया जाता है वह नामेन्द्र, नाम और नाम वाले के अभेद उपचार से नाम ऐसा जो इन्द्र है वह नामेन्द्र अथवा इन्द्र के अर्थ से शून्य होने से केवल नाम से जो इन्द्र है वह नामेन्द्र कहलाता है। इन्द्र आदि के अभिप्राय से किसी वस्तु में इन्द्र की स्थापना की जाती है, वह स्थापनेन्द्र है। द्रव्य 'ट्ठ गतौ' इस धातु से द्रव्य शब्द बना है। द्रवति-गच्छति तान्-तान् पर्यायान् इति द्रव्यम्। जो उन उन पर्यायों को प्राप्त होता है अथवा उन-उन पर्यायों से प्राप्त होता है अथवा द्रो - सत्ता के अवयव के विकार अथवा वर्ण आदि गुणों के द्राव-समूह को द्रव्य कहते हैं। जो भूत पर्याय और भाविभाव पर्याय के योग्य होता है वह द्रव्य कहलाता है। घी का घडा खाली होने पर भी घी का घड़ा ही कहलाता है यह भूत पर्याय और जो राजकुमार भविष्य में राजा होने वाला है वह भावि पर्याय। उपयोग रहित और अप्रधान वह द्रव्य ऐसा इन्द्र वह द्रव्येन्द्र है। द्रव्येन्द्र दो प्रकार का है - आगम से और नो आगम से। आगम से द्रव्येन्द्र यानी आगम को स्वीकार कर ज्ञान की अपेक्षा अर्थ किया जाता है और नो आगम से इन्द्र शब्द का जानकार परन्तु उपयोग रहित वक्ता वह द्रव्येन्द्र है। आध्यात्मिक ऐश्वर्य की अपेक्षा से भावेन्द्र तीन प्रकार के कहे हैं - १. ज्ञानेन्द्र - केवलज्ञानी २. दर्शनेन्द्र - क्षायिक सम्यग्-दर्शन वाला- और ३. चारित्रेन्द्र - यथाख्यात चारित्र वाला। बाह्य ऐश्वर्य की अपेक्षा से भावेन्द्र तीन प्रकार के कहे हैं - १. देवेन्द्र - ज्योतिषी वैमानिक देवों का इन्द्र २. असुरेन्द्र - भवनपति वाणव्यंतर देवों का इन्द्र ३. मनुष्येन्द्र - चक्रवर्ती आदि।
तिविहा विगुव्वणा पण्णत्ता तंजहा - बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता एगा विगुवणा, बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता एगा विगुव्वणा, बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता वि अपरियाइत्ता वि एगा विगुव्वणा। तिविहा विगुव्वणा पण्णत्ता तंजहा - अब्भंतरए
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