Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान २ उद्देशक ४
१२९ 000000000000000000000000000000000000000000000000000
६. तरुपतन मरण - वृक्ष पर से गिर कर मरना। ७. जल प्रवेश मरण - पानी में गिर कर मरना। ८. ज्वलन प्रवेश मरण - अग्नि में गिर कर मरना। ९. विषभक्षण मरण - जहर खाकर मरना।
१०. शस्त्रावपाटन मरण - जिस मरण में छुरी तलवार आदि शस्त्रों से अपने शरीर का विदारण होता है वे शस्त्रावपाटन मरण कहलाते हैं। __ शेष दो मरण की भी प्रभु ने आज्ञा नहीं दी है किन्तु कारण उपस्थित होने पर यानी ब्रह्मचर्य आदि की रक्षा का दूसरा कोई उपाय न हो तो भगवान् ने इन दो मरणों का निषेध नहीं किया है। वे इस प्रकार हैं -
११. वैहानस मरण - फांसी द्वारा वृक्ष आदि पर लटक कर मरना।
१२. गृद्ध स्पृष्ट (गृद्ध पृष्ठ) मरण - मरे हुए हाथी या ऊँट आदि के कलेवर में प्रवेश कर - अपने शरीर के मांस को गिद्ध पक्षियों को खिला देना ऐसी इच्छा वाले जीव का मरण गृद्ध स्पृष्ट
मरण है। .. ये १२ भेद अप्रशस्त मरण के हैं। प्रशस्त मरण भव्य जीवों को होता है जिनके लिये भगवान् ने आज्ञा दी है। उसके दो भेद हैं -
१. पादपोपगमन - पादप अर्थात् वृक्ष, उपगमन यानी उपमा वाला। तात्पर्य यह है कि कटा . हुआ वृक्ष या कटी हुई वृक्ष की शाखा जिस प्रकार स्वतः हलन चलन रहित निष्पकम्प रहती है। उसी के समान निश्चल रहकर मरण को प्राप्त करना पादपोपगमन मरण कहलाता है। - २. भक्त प्रत्याख्यान - भक्त यानी भोजन, प्रत्याख्यान यानी त्याग, तीन या चारों आहार का त्याग करना भक्त प्रत्याख्यान मरण कहलाता है। पादपोपगमन और भक्त प्रत्याख्यान मरण दो-दो प्रकार का होता है, यथा - १. निरिम और २. अनि रिम। मरण स्थान से मृत शरीर को बाहर ले जाना निर्हारिम कहलाता है और मरण स्थान पर ही मृत शरीर को पड़े रहने देना अनि रिम कहलाता है। जब समाधि मरण गाँव, नगर आदि बस्ती में होता है तब शव (मृत शरीर) को बाहर ले जाकर छोड़ा जा सकता है या दाह क्रिया की जा सकती है किन्तु जब समाधि मरण पहाड़ की गुफा आदि निर्जन स्थान में होता है तब शव बाहर नहीं ले जाया जाता है।
के अयं लोए ? जीवच्चेव अजीवच्चेव। के अणंता लोए ? जीवच्चेव अजीवच्चेव। के सासया लोए ? जीवच्चेव अजीवच्चेव। दुविहा बोही पण्णत्ता तंजहा - णाणबोही चेव दंसणबोही चेव। दुविहा बुद्धा पण्णत्ता तंजहा - णाणबुद्धा दंसण बुद्धा चेव। एवं मोहे मूढा॥५०॥
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