Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान २ उद्देशक ३ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 चेव, पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं चेव। दोण्हं गब्भत्थाणं आहारे पण्णत्ते तंजहा - मणुस्साणं चेव, पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं चेव। दोण्हं गब्भत्थाणं वुड्डी पण्णत्ता तंजहा - मणुस्साणं चेव, पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं चेव। एवं णिव्वुड्डी, विगुव्वणा, गइपरियाए, समुग्घाए, कालसंजोगे, आयाई, मरणे। दोण्हं छविपव्वा पण्णत्ता तंजहामणुस्साणं चेव, पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं चेव। दो सुक्कसोणियसंभवा पण्णत्ता तंजहा - मणुस्सा चेव, पंचेंदियतिरिक्खजोणिया चेव। दुविहा ठिई पण्णत्ता तंजहाकायट्रिई चेव, भवदिई चेव। दोण्हं कायट्टिई पण्णत्ता तंजहा - मणुस्साणं चेव, पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं चेव। दोण्हं भवट्ठिई पण्णत्ता तंजहा - देवाणं चेव णेरड्याणं चेव। दुविहे आउएं पण्णत्ते तंजहा - अद्धाउए चेव, भवाउए चेव। दोण्हं अद्धाउए पण्णत्ते तंजहा - मणुस्साणं चेव, पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं चेव। दोण्हं भवाउए पण्णत्ते तंजहा - देवाणं चेव, णेरइयाणं चेव। दुविहे कम्मे पण्णत्ते तंजहापएसकम्मे चेव, अणुभावकम्मे चेव। दो अहाउयं पालेंति तंजहा - देवच्चेव, णेरड्यच्चेव। दोण्हं आउयसंवट्टए पण्णत्ते तंजहा - मणुस्साणं चेव, पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं चेव॥३३॥
कठिन शब्दार्थ - दोण्हं - दो का, उववाए - उपपातजन्म, उवट्टणा - उद्वर्तना, चयणे - च्यवन, गब्भवक्कंती - गर्भ व्युत्क्रांति-गर्भ से उत्पत्ति, गब्भत्थाणं - गर्भ में रहे हुए ही, वुडी - वृद्धि, णिव्यड्डी - निवृद्धि-क्षीण हो जाते हैं, विगुव्वणा - विकुर्वणा, गइपरियाए - गति पर्याय, समुग्घाए - समुद्घात, कालसंजोगे - कालकृत अवस्था, आयाई - गर्भ से बाहर निर्गम, मरणे - मरण-मृत्यु, छविपव्वा - चमडी और पर्व सुक्कसोणियसंभवा - शुक्र और शोणित-वीर्य और रज से उत्पन्न, कायट्ठिई - कायस्थिति, भवट्ठिई - भवस्थिति, आउए - आयुष्य, अद्धाउए - अद्धायु, भवाउए - भवायु, पएसकम्मे - प्रदेश कर्म, अणुभावकम्मे - अनुभाव कर्म, अहाउयं - यथायु, आउय-संवट्टए- आयु संवर्तक।
भावार्थ - देव और नैरयिक इन दो का उपपात जन्म कहा गया है क्योंकि वहां गर्भस्थिति नहीं है। नैरयिक और भवनपति देव इन दोनों का मरण उद्वर्तना कहलाता है। ज्योतिषी और वैमानिक इन दोनों का मरण च्यवन कहलाता है। मनुष्य और पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च इन दो की उत्पत्ति गर्भ से होती है ऐसा फरमाया गया है। मनुष्य और पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च इन दोनों के गर्भ में रहे हुए ही आहार कहा गया है अर्थात् ये दोनों गर्भ में रहे हुए ही आहार करते हैं। इसी प्रकार मनुष्य और
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