Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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. स्थान २ उद्देशक ४
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इन पल्यों को दस कोडाकोडी से गुणा किया जाय वह एक सागरोपम का परिमाण होता है अर्थात् दस कोड़ाकोड़ी पल्योपम का एक सागरोपम होता है।
- विवेचन - पदार्थों के बदलने में जो निमित्त हो उसे काल कहते हैं अथवा समय के समूह को काल कहते हैं। काल की दो उपमायें हैं - १. पल्योपम और २. सागरोपम।
१. पल्योपम - पल्य अर्थात् कूप की उपमा से गिना जाने वाला काल 'पल्योपम' कहलाता है। पल्योपम के तीन भेद हैं - १. उद्धार पल्योपम २. अद्धा पल्योपम ३. क्षेत्र पल्योपम।
२. सागरोपम - सागर की उपमा वाला काल सागरोपम कहलाता है। दस कोडाकोडी पल्योपम को सागरोपम कहते हैं। सागरोपम के तीन भेद हैं - १. उद्धार सागरोपम २. अद्धा सागरोपम और ३. क्षेत्र सागरोपम। ... पल्योपम, सागरोपम का विस्तृत विवेचन अनुयोग द्वार सूत्र में दिया गया है जिज्ञासुओं को वहां से देखना चाहिये।
दुविहे कोहे पण्णत्ते तंजहा - आयपइट्ठिए चेव परपइटिए चेत। एवं णेरइयाणं जाव. वेमाणियाणं, एवं जाव मिच्छादसणसल्ले। दुविहे संसार समावण्णगा जीवा पण्णत्ता तंजहा - तसा चेव थावरा चेव। दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता तंजहा - . सिद्धा चेव असिद्धा चेव। दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता तंजहा - सइंदिया चेव अणिंदिया
चेव। एवं एसा गाहा फासेयव्वा जाव ससरीरी चेव असरीरी चेव - _ सिद्धसइंदियकाए, जोगें वेए कसाय लेस्सा या
- णाणुवओगाहारे, भासग चरिमे य ससरीरी॥१॥४८॥ कठिन शब्दार्थ - आयपइट्ठिए - आत्म प्रतिष्ठित, परपइट्ठिए - पर प्रतिष्ठित, फासेयव्या - अनुसरण करना चाहिये।
भावार्थ - क्रोध दो प्रकार का कहा गया है यथा - आत्मप्रतिष्ठित यानी अपनी निज की कोई त्रुटि देख कर अपनी आत्मा में उत्पन्न होने वाला अथवा अपनी आत्मा द्वारा दूसरे पर होने वाला क्रोध और पर प्रतिष्ठित यानी दूसरे के द्वारा कटु वचनादि सुन कर उत्पन्न होने वाला अथवा दूसरे पर किया जाने वाला क्रोध। इस प्रकार नैरयिकों से लेकर यावत् वैमानिक देवों तक चौबीस दण्डक में मिथ्यादर्शन शल्य तक अठारह ही पापस्थानों के आत्मप्रतिष्ठित और परप्रतिष्ठित ये दो दो भेद कह देने चाहिये। संसार समापन्नक यानी संसार में रहे हुए जीव दो प्रकार के कहे गये हैं यथा - त्रस और स्थावर। सब जीव दो प्रकार के कहे गये हैं यथा - सिद्ध और असिद्ध। सब जीव दो प्रकार के कहे गये हैं यथा - सेन्द्रिय अर्थात् इन्द्रियाँ वाले और अनिन्द्रिय अर्थात् केवली भगवान्। इस प्रकार
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