Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 योजन ऊंचा, १००० योजन चौडा तथा दक्षिण और उत्तर से कालोदधि समुद्र और लवण समुद्र को स्पर्श किये हुए अर्थात् कालोदधि समुद्र और लवण समुद्र पर्यन्त लम्बे ऐसे दो श्रेष्ठ इषुकार पर्वत धातकीखण्ड के मध्य रहे हुए हैं। उन दो इषुकार पर्वत से पूर्वार्द्ध और पश्चिमार्द्ध ऐसे दो विभाग धातकी खण्ड के कहे गये हैं। शेष वर्णन जम्बूद्वीप प्रकरण के अनुसार जानना चाहिये। विशेषता यह है कि जम्बूद्वीप की अपेक्षा धातकी खंड द्वीप में मेरु, वर्ष (क्षेत्र) और वर्षधर पर्वतों की संख्या दुगुनी है अर्थात् धातकीखंड में दो मेरु पर्वत, चौदह वर्ष (क्षेत्र) और बारह वर्षधर पर्वत हैं उनके नाम जम्बूद्वीप के अनुसार ही है। जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत की ऊँचाई १ लाख योजन है जबकि धातकीखंड के मेरु की ऊंचाई ८५ हजार योजन है। मेरु पर्वत पर चार वन और चार अभिषेक शिलाएं है। शेष नदी, क्षेत्र, पर्वत आदि भी धातकी खंड में जंबूद्वीप से दुगुनी संख्या में है।
कालोदस्स णं समुदस्स वेइया दो गाउयाई उडे उच्चत्तेणं पण्णत्ता। पुक्खरवर दीवड्डपुरच्छिमद्धेणं मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिणेणं दो वासा पण्णत्ता बहुसमतुल्ला जाव भरहे चेव, एरवए चेव, तहेव जाव दो कुराओ पण्णत्ताओ देवकुरा चेव उत्तरकुरा चेव। तत्थ णं दो महतिमहालया महहुमा पण्णत्ता तंजहा - कूडसामली चेव पउमरुक्खे चेव, दो देवा गरुले चेव वेणुदेवे पउमे चेव, जाव छव्विहं वि कालं पच्चणुभवमाणा विहरंति। पुक्खरवरदीवड्डपच्चत्थिमद्धे णं मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर दाहिणेणं दो वासा पण्णत्ता तंजहा तहेव णाणत्तं कूडसामली चेव महापउमरुक्खे चेव, देवा गरुले चेव वेणुदेवे पुंडरीए चेव। पुक्खरवर दीवड्डे णं दीवे दो भरहाई दो एरवयाइं जाव दो मंदरा दो मंदरचूलियाओ। पुक्खरवरस्स णं दीवस्स वेइया दो गाउयाइं उ९ उच्चत्तेणं पण्णत्ता। सव्वेसिं वि णं दीव समुद्दाणं वेइयाओ दो गाउयाई उड्डे उच्चत्तेणं पण्णत्ताओ॥४१॥ ___ कठिन शब्दार्थ - कालोदस्स - कालोदधि, समुदस्स - समुद्र की, पुक्खरवरदीवड पुरच्छिमद्धेणं - पुष्करार्द्ध द्वीप के पूर्व के आधे भाग में।
भावार्थ - कालोदधि समुद्र की वेदिका दो गाऊ यानी कोस ऊंची कही गई है। पुष्करार्द्ध द्वीप के पूर्व के आधे भाग में मेरु पर्वत की उत्तर और दक्षिण दिशा में भरत और ऐरवत ये दो क्षेत्र कहे गये हैं यावत् वे दोनों समान हैं। यावत् देवकुरु और उत्तरकुरु ये दो कुरु कहे गये हैं, यहां तक सारा अधिकार उसी प्रकार यानी धातकीखण्ड के समान कहना चाहिये। वहां पर कूटशाल्मली और पद्म वृक्ष नाम के दो बड़े विस्तार वाले महाद्रुम कहे गये हैं। उन पर क्रमशः गरुड़ वेणुदेव और पद्म ये
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