Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान २ उद्देशक ३
___ १११ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 चन्द्रपर्वत, दो सूर्यपर्वत, दो नागपर्वत, दो देवपर्वत, दो गन्धमादन गजदंता पर्वत हैं। ये सब धातकी खण्ड के पूर्वार्द्ध और पश्चिमार्द्ध में रहे हुए हैं, इसलिए ये सब दो दो कहे गये हैं। धातकीखण्ड के उत्तर और दक्षिण ऐसे दो विभाग करने वाले दो इषुकार पर्वत हैं, दो चुल्लहिमवान् कूट, दो वैश्रमणकूट, दो महाहिमवानकूट, दो वैडूर्यकूट, दो निषधकूट, दो रुचककूट, दो नीलवान्कूट, दो उपदर्शनकूट, दो रुक्मीकूट, दो मणिकंचनकूट, दो शिखरीकूट, दो तिगिंच्छिकूट, दो पद्मद्रह, दो पद्मद्रह में रहने वाली श्री देवियां, दो महापद्मद्रह, दो महापद्म द्रह में रहने वाली ही देवियाँ हैं। इस प्रकार यावत् दो पुण्डरीक द्रह, दो पुण्डरीक द्रह में रहने वाली लक्ष्मी देवियां, दो गङ्गाप्रपात द्रह यावत् दो रक्तवतीप्रपात द्रह, दो रोहिता, यावत् दो रुप्यकूला, दो गाहवती नदियाँ, दो द्रहवती नदियाँ, दो पङ्कवती नदियाँ, दो तप्तजला, दो मत्तजला, दो उन्मत्तजला, दो क्षीरोदक, दो सिंहस्रोता, दो अन्तर्वाहिनी, दो उर्मिमालिनी, दो फेनमालिनी, दो गम्भीरमालिनी नदियाँ हैं। दो कच्छ, दो सुकच्छ, दो महाकच्छ, दो कच्छगावती, दो आवर्ता, दो मङ्गलावर्ता, दो पुष्कला, दो पुष्कलावती, दो वत्सा, दो सुवत्सा, दो महावत्सा, दो वच्छगावती, दो रम्या, दो रम्यगा, दो रमणीय, दो मङ्गलावती, दो पद्मा, दो सुपद्मा, दो महापद्मा, दो पद्मगावती, दो शंखा, दो नलिना, दो कुमुदा, दो सलिलावती, दो वप्रा, दो सुवप्रा, दो महावप्रा, दो वप्रगावती, दो वल्गु, दो सुवल्गु दो गन्धिला, दो गन्धिलाक्ती, इस प्रकार सष दो दो हैं। अब राजधानियों के नाम बताये जाते हैं। यथा - दो क्षेमा, दो क्षेमपुरी, दो रिष्टा, दो रिष्टपुरी, दो खड्गी, दो मञ्जुषा, दो औषधि, दो पुण्डरीकिणी, दो सुसीमा, दो कुण्डला, दो अपराजिता, दो प्रभङ्करा, दो अङ्कावती, दो पद्मावती, दो शुभा, दो रत्नसञ्चया, दो आशपुरा, दो सिंहपुरा, दो महापुरा, दो विजयपुरा, दो अपराजिता, दो अपरा, दो अशोका, दो विगतशोका, दो विजया, दो वैजयंती, दो जयंती, दो अपराजिता, दो चक्रपुरा, दो खड्गपुरा, दो अवदया, दो अयोध्या, इस प्रकार सब के दो दो भेद हैं। धातकीखण्ड द्वीप में दो मेरु पर्वत हैं, इसलिए दो भद्रशाल वन, दो नन्दन वन, दो सोमनस वन, दो पण्डक वन, दो पाण्डुकम्बल शिला, दो अति पाण्डुकम्बल शिला, दो रक्तकम्बल शिला, दो. अतिरक्त कम्बल शिलाएं हैं, दो मेरु पर्वत हैं और दो मेरु पर्वत की चूलिकाएं हैं । धातकीखण्ड द्वीप की वेदिका दो गाऊ ऊंची कही गई हैं।
विवेचन - एक लाख योजन के जम्बूद्वीप के चारों ओर दो लाख योजन का लवण समुद्र है। लवण समुद्र के चारों ओर ४ लाख योजन की लम्बाई चौड़ाई वाला धातकी खंड द्वीप है। धातकी अर्थात् वृक्ष विशेष खंड यानी वनसमूह जहां धातकी नामक वृक्ष विशेष का वन समूह है वह धातकी खण्ड कहलाता है। उससे युक्त जो द्वीप है वह धातकी खण्ड द्वीप है। धातकी खण्ड ऐसा जो द्वीप है वह धातकी खण्ड द्वीप कहलाता है उसका जो अर्द्ध पूर्वक विभाग है वह धातकीखण्डद्वीप पूवार्द्ध है। पूर्व और पश्चिम विभाग इषुकार पर्वत के कारण हुआ है। जैसा कि टीकाकार ने कहा है-५००
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