Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र
बिन्दियाँ लगाने से १९४ अंक होते हैं। इसको शीर्ष प्रहेलिका कहते हैं। इसमें मतान्तर भी है। वह यह है कि २५० अंक तक की संख्या को शीर्षप्रहेलिका कहते हैं। १९४ अंक इस प्रकार है। यथा - ___७५८, २६३२५, ३०७३०१०२४११५७९७३५६९९७५६९६४०६२१८९६६८४८०८०१८३२९६ ये ५४ अंक है इनके ऊपर १४० बिन्दियाँ लगाने से शीर्षप्रहेलिका संख्या बनती है।
___वीर निर्वाण ८२७-८४० वर्ष बाद मथुरा में नागार्जुन की अध्यक्षता में और वल्लभीपुरी में स्कन्दिलाचार्य की अध्यक्षता में इस प्रकार दो वाचनाएं हुई। माथुरी वाचना में शीर्षप्रहेलिका में १९४ अंक होते हैं। वल्लभी वाचना में २५० अंकों की संख्या को शीर्ष प्रहेलिका कहा है। यथा -
१८७९५५१७९५५०११२५९५४१९००९६९९८१३४३०७७०७९७४६५४९४२६१९७७ ७४७६५७२५७३४५७१८१८१६ इन ७० अंकों पर १८० बिन्दियाँ लगाने पर २५० अंक होते हैं।
शीर्षप्रहेलिका की अंक राशि चाहे १९४ अंक प्रमाण हो अथवा २५० अंक प्रमाण हो परन्तु गणना के नामों में शीर्ष प्रहेलिका को ही अन्तिम स्थान प्राप्त है। यद्यपि शीर्ष प्रहेलिका से भी आगे संख्यात काल पाया जाता है तो भी सामान्य ज्ञानी के व्यवहार योग्य शीर्षप्रहेलिका ही मानी गई है। इसके आगे के काल को उपमा के माध्यम से वर्णन किया गया है।
शीर्ष प्रहेलिका तक के काल का व्यवहार संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले रत्नप्रभा पहली नरक के नैरयिक तथा भवनपनि और वाणव्यन्तर देवों के तथा भरत और ऐरवत क्षेत्र में अवसर्पिणी के तीसरे सुषमदुष्षमा आरे के अन्तिम भाग में होने वाले मनुष्यों के और तिर्यंचों के आयुष्य का प्रमाण बताने के लिए किया जाता है। इससे ऊपर असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले देव, नारक, मनुष्य और तिर्यंचों के आयुष्य का प्रमाण पल्योपम से और उसके आगे के आयुष्य वाले देव और नारकों का आयुष्य प्रमाण सागरोपम से निरूपण किया जाता है। - यह व्यावहारिक काल है। इससे आगे असंख्यात काल है किन्तु वह व्यवहार में समझ में न आने से उपमा के द्वारा कहा गया है। पल्योपम, सागरोपम, उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी। यह सब काल जीव और अजीव कहे जाते हैं क्योंकि यह सब काल जीव और अजीव पर प्रवर्तता है।
विवेचन - काल का अविभाज्य अंश जिसका विभाग बुद्धि की कल्पना से नहीं किया जा सकता, उसको 'समय' कहते हैं। असंख्यात समयों की एक आवलिका होती है। संख्यात अर्थात् ४४४६ आवलिका का एक श्वास और ४४४६ आवलिका का एक उच्छ्वास होता है (इसकी गणित इस प्रकार हैं - १,६७,७७,२१६ आवलिका का एक मुहूर्त होता है। जैसा कि कहा है -
तीन साता, दो आगला आगल पाछल सोल। इतनी आवलिका मिलाय कर एक मुहूर्त तूं बोल॥ दूसरी तरफ बतलाया गया है कि ३७७३ श्वासोच्छ्वास का एक मुहूर्त होता है। इसलिए
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