Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000
भावार्थ - इस जंबूद्वीप में मेरु पर्वत के उत्तर और दक्षिण दिशा में क्रमशः भरत और ऐरावत ये दो क्षेत्र कहे गये हैं। ये दोनों लम्बाई चौड़ाई, संस्थान यानी आकार और परिधि से अत्यन्त समान प्रमाण वाले हैं। इन में किञ्चिन्मात्र भी भिन्नता नहीं है और परस्पर अतिक्रमण नहीं करते हैं यानी. दोनों समान है। इसी प्रकार इस अभिलापक के अनुसार हैमवत और हैरण्यवत तथा हरिवर्ष और रम्यकवर्ष क्षेत्रों के विषय में भी जानना चाहिए।
इस जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत के पूर्व और पश्चिम दिशा में क्रमशः पूर्वविदेह और पश्चिम विदेह ये दो क्षेत्र कहे गये हैं। ये दोनों लम्बाई चौड़ाई आदि में समान हैं यावत् इनमें कुछ भी भिन्नता नहीं हैं। इस जम्बूद्वीप के मेरु. पर्वत के उत्तर और दक्षिण दिशा में क्रमशः देवकुरु और उत्तरकुरु ये दो कुरु कहे गये हैं। ये दोनों लम्बाई चौड़ाई आदि में समान हैं वहाँ पर कूट शाल्मली और जम्बू ये दो महागुम हैं ये दोनों वृक्ष बहुत विस्तृत, तेजवान् और अनेक उत्सवों के स्थानभूत हैं और दर्शनीय हैं। ये दोनों लम्बाई चौड़ाई, ऊंचाई, उद्वेष, संस्थान और परिधि से समान हैं। किसी प्रकार की भिन्नता नहीं है और परस्पर एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करते हैं। वहाँ पर शाल्मली वृक्ष पर और. जम्बू वृक्ष पर सुपर्णकुमार जाति के वेणुदेव नाम के देव और अनादृत देव, ये दो देव रहते हैं। इनमें से अनादृत देव जम्बूद्वीप का स्वामी है महान् ऋद्धि वाला है यावत् महान् सुख का भोक्ता है इसकी स्थिति एक पल्योपम की है।
विवेचन - जंबूद्वीप परिपूर्ण चन्द्रमंडल के आकार वाला है। उसके मध्य में रहे हुए मेरु पर्वत की उत्तर दिशा में ऐरावत क्षेत्र और दक्षिण दिशा में भरत क्षेत्र है। दोनों क्षेत्रों की लम्बाई चौड़ाई परिधि आदि समान है इसी प्रकार हैमवत् हैरण्यवत् और हरिवर्ष रम्यक्व क्षेत्र परस्पर समान है। जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत के पूर्व दिशा में पूर्व विदेह और पश्चिम दिशा में पश्चिम विदेह तथा उत्तर और दक्षिण दिशा में क्रमशः देवकुरु और उत्तरकुरु है। ये क्षेत्र भी लम्बाई चौड़ाई आदि में परस्पर तुल्य है। देवकुरु के मध्य भाग में कूटशाल्मली और उत्तर कुरु के मध्यभाग में जम्बू वृक्ष हैं जिन पर क्रमशः सुपर्णकुमार जाति के वेणुदेव नाम के देव और अनादृत देव निवास करते हैं। इन दोनों में से अनादृत देव जम्बूद्वीप का स्वामी है। ___जम्बू वृक्ष का वर्णन करते हुए टीकाकार ने कहा है - जम्बू वृक्ष के फूल और फल रत्नमय है। जम्बू वृक्ष का विष्कंभ आठ योजन, ऊंचाई आठ योजन है दो कोस (गाऊ) जमीन में ऊंडा है स्कंध (जंबू वृक्ष के कंद से ऊपर का और शाखा जहां से निकली है वहाँ तक का भाग) दो योजन ऊंचा है छह छह योजन की चार महाशाखाएं चारों तरफ फैली हुई है, शाखाओं के मध्य में विडिम नाम की एक शाखा सभी शाखाओं से ऊंची है। पूर्व दिशा की शाखा के मध्य में अनादृत देव के शयन करने योग्य भवन एक कोस लम्बा है। शेष तीन शाखाओं पर तीन प्रासाद हैं उनमें तीन रमणिक सिंहासन है। जंबू वृक्ष के समान ही कूटशाल्मली वृक्ष का वर्णन जानना चाहिये।
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