Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान २ उद्देशक ३ 000000000000000000000000000000000000000000000000000
मेरु पर्वत के उत्तर और दक्षिण दिशा में दो दीर्घ (लम्बा) वैताढ्य पर्वत हैं। ये दोनों पर्वत भरत और ऐरवत क्षेत्र के मध्य भाग में पूर्व और पश्चिम से लवण समुद्र को स्पर्श करते हैं। दोनों २५ योजन ऊंचे हैं २५ गाऊ ऊंडे (गहरे) है और २५ योजन चौड़े हैं। आयत संठाण वाले सर्व रत्नमय है।
. भरतक्षेत्र के दीर्घ वैताढ्य पर्वत के पश्चिम भाग में तमिस्रा गुफा ५० योजन लम्बी १२ योजन चौड़ी और आठ योजन ऊंची आयत चतुरस्र संस्थान वाली है। जो विजय द्वार के समान आठ योजन ऊंचे और चार योजन चौड़े द्वार वाली वन के किवाडों से ढकी हुई है जिसके बहुमध्य भाग में दो योजन के अंतर एवं तीन योजन के विस्तार वाली उन्मग्नजला और निमग्नजला नाम की दो नदियाँ हैं। तमिस्रा गुफा की तरह पूर्व भाग में खण्डप्रपात गुफा जाननी चाहिये। तमिस्रा गुफा में कृतमाल्यक
और खण्डप्रपात गुफा में नृतमाल्यक नाम के दो देव बसते हैं। ऐरावत क्षेत्र में भी भरत क्षेत्र की तरह समझ लेना चाहिये। .. चुल्लहिमवान् वर्षधर पर्वत पर ११ कूट शिखर हैं। उनमें से पर्वत के अधिपति देव का निवास होने से और देवों के निवासभूत कूटों में पहला होने से हिमवत् कूट का ग्रहण किया है और सभी कूटों में अंतिम होने से वैश्रमण कूट का ही ग्रहण किया है क्योंकि यहां दो स्थानों का अधिकार चल रहा है अतः सूत्रकार ने दो कूटों के ही नाम दिये हैं। चौतीस दीर्घ वैताढ्य, माल्यवान विद्युतप्रभ निषध और नीलवान् इन सभी पर्वतों में नौ-नौ कूट कहे हैं। शिखरी और लघु हिमवान् पर्वत पर ११-११ कूट हैं। रुक्मी और महाहिमवान् पर्वत पर ८-८ तथा सौमनस तथा गंधमादन पर्वत पर ७-७ कूट हैं। १६ वक्षस्कार पर्वतों पर चार-चार कूट कहे गये हैं। पूर्ववत् यहाँ भी दूसरे और अंतिम कूटों का ही नाम सूत्रकार ने ग्रहण किया है। - जंबूमंदरस्स पव्वयस्स उत्तर दाहिणेणं चुल्लहिमवंतसिहरीसु वासहरपव्वएस दो महदहा पण्णत्ता बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अण्णमण्णं णाइवट्ठति आयामविक्खंभउव्वेह संठाण परिणाहेणं तंजहा - पउमइहे चेव पुंडरीयहहे चेव। तत्थ णं दो देवयाओ महिड्डियाओ. जाव पलिओवमट्ठिइयाओ परिवसंति तंजहा - सिरी चेव लच्छी चेव। एवं महाहिमवंतरुप्पीसु वासहरपव्वएसु दो महदहा पण्णत्ता बहुसमतुल्ला जाव तंजहा महापउमइहे चेव महापोंडरीय हे चेव। देवयाओ हिरि- . च्चेव बुद्धिच्चेव। एवं णिसढणीलवंतेसु वासहरपव्वएसु तिगिंछिद्दहे चेव केसरिहहे चेव। देवयाओ पिई चेव कित्तिच्चेव। जंबूमंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं महाहिमवंताओ वासहरपव्ययाओ महापउमहहाओ दो महाणईओ पवहंति तंजहा - रोहियच्चेव
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