Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान २ उद्देशक २
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केठिन शब्दार्थ - आया - आत्मा, अहेलोग - अधोलोक को, जाणइ - जानता है, पासइ - देखता है, समोहएणं अप्पाणेणं - समुद्घात करने वाले आत्म स्वभाव से, असमोहएणं अप्पाणेणंअसमुद्घात किये हुए आत्मा से, आहोहि - परमावधिज्ञानी और अवधिज्ञानी, समोहयासमोहएणं अप्पाणेणं - समवहत और असमवहत आत्म स्वभाव से, केवलकप्पलोगं - सम्पूर्ण लोक को, विउव्विएणं - वैक्रिय शरीर करके, अविउव्विएणं - वैक्रिय शरीर किये बिना, सहाई - शब्दों को सुणेइ- सुनता है, देसेण - देश से सव्वेण - सर्व से, अग्याइ - सूंघता है, आसाएइ - आस्वाद लेता है, पडिसंवेदेइ - अनुभव करता है, ओभासइ - प्रकाशित होता है, विकुव्वइ - वैक्रिय करता है, परियारेइ- मैथुन सेवन करता है, भासं भासइ - बोलता है, परिणामेइ - परिणमन करता है, वेएइ - वेदन करता है, णिज्जरेइ - निर्जरा करता है, किण्णरा- किन्नर, किंपरिस- किंपुरुष, गंधव्या - गंधर्व, मरुया देवा- मरुत देव-लोकान्तिक देव, एगसरीरे - एक शरीर वाले, बिसरीरे - दो शरीर वाले।
भावार्थ - दो कारणों से आत्मा अधोलोक को जानता और देखता है यथा - समुद्घात करने वाले आत्मस्वभाव से अर्थात् समुद्घात करके आत्मा अधोलोक को जानता और देखता है और असमुद्घात किये हुए आत्मा से यानी बिना समुद्घात किये ही आत्मा अधोलोक को जानता और देखता है। परमावधिज्ञानी और अवधिज्ञानी आत्मा समवहत और असमवहत आत्मस्वभाव से यानी समुद्घात करके अथवा बिना समुद्घात किये ही अधोलोक को जानता और देखता है। इसी प्रकार तिर्यग्लोक को तथा ऊर्ध्वलोक. को और सम्पूर्ण लोक को आत्मा जानता और देखता है। दो कारणों से यानी दो प्रकार से आत्मा अधोलोक को जानता और देखता है यथा - वैक्रिय शरीर करके आत्मा अधोलोक को जानता और देखता है और वैक्रिय शरीर किये बिना ही आत्मा अधोलोक को जानता और देखता है। परमावधिज्ञानी आत्मा वैक्रिय शरीर करके और वैक्रिय शरीर किये बिना ही अधोलोक को जानता और देखता है। इसी प्रकार तिर्यग्लोक को, ऊर्ध्वलोक को और सम्पूर्ण लोक को जानता और देखता है। दो स्थानों से आत्मा शब्दों को सुनता है यथा - देश से अर्थात् एक कान के बहरा होने के कारण सिर्फ एक कान से ही आत्मा शब्दों को सुनता है और सर्व से यानी दोनों कानों से अथवा सम्भिन्नश्रोत लब्धि वाला आत्मा समग्र शरीर से शब्दों को सुनता है। इसी प्रकार रूपों को देश और सर्व से देखता है। गन्धों को देश और सर्व से सूंघता है। रसों का देश और सर्व से आस्वाद लेता है। स्पर्शों का देश और सर्व से अनुभव करता है। दो स्थानों से आत्मा प्रकाशित होता है। यथा- आत्मा देश से खद्योत के समान प्रकाशित होता है और आत्मा सब प्रदेशों से दीपक की तरह प्रकाशित होता है। इसी प्रकार विशेष रूप से प्रकाशित होता है। वैक्रिय करता है। मैथुन सेवन करता है। भाषा बोलता है। आहार करता है। आहार का परिणमन करता है। वेदन यानी अनुभव करता है। निर्जरा करता है। ये सभी बातें आत्मा देश से और सर्व से करती है। देव दो स्थानों से शब्द सुनता
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