Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान १ उद्देशक १
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__अर्थ - एक समय से आठ समय तक एक एक से लेकर बत्तीस तक जीव मोक्ष जा सकते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि पहले समय में जघन्य एक दो और उत्कृष्ट बत्तीस जीव सिद्ध हो सकते हैं। इसी तरह दूसरे समय में भी जघन्य एक दो और उत्कृष्ट बत्तीस जीव मोक्ष जा सकते हैं। इसी तरह तीसरे, चौथे यावत् आठवें समय तक जघन्य एक दो और उत्कृष्ट बत्तीस जीव मोक्ष जा सकते हैं। आठ समयों के बाद निश्चित रूप से अन्तर पड़ता है।
तेतीस से लेकर अड़तालीस तक जीव निरन्तर सात समय तक मोक्ष जा सकते हैं। इसके पश्चात् निश्चित रूप से अन्तर पड़ता है। ऊनपचास से लेकर साठ तक जीव निरन्तर छह समय तक मोक्ष जा सकते हैं। इसके बाद निश्चित रूप से अन्तर पड़ता है। इकसठ से बहत्तर तक जीव निरन्तर पांच समय तक, तिहत्तर से चौरासी तक निरन्तर चार समय तक, पिच्यासी से छयानवें तक निरन्तर तीन समय तक, सत्तानवें से एक सौ दो तक निरन्तर दो समय तक मोक्ष जा सकते हैं। इसके बाद निश्चित रूप से अन्तर पडता है। एक सौ तीन से लगा कर एक सौ आठ तक जीव निरन्तर एक समय तक मोक्ष जा सकते हैं अर्थात् एक समय में उत्कृष्ट एक सौ आठ सिद्ध हो सकते हैं। इसके पश्चात् अवश्य अन्तर पड़ता है। दो तीन आदि समय तक निरन्तर उत्कृष्ट सिद्ध नहीं हो सकते हैं।
पुद्गल - जिसका एकत्व, पृथक्त्व, मिलने और बिछुड़ने का स्वभाव हो। तत्त्वार्थ सूत्र अ०५ सूत्र २३ टीका में पुद्गल के विषय में कहा है - "पूरण गलन धर्मिण पुद्गलाः" - पूरण गलन धर्म वाले पुद्गल कहलाते हैं।
प्रश्न - परमाणु किसे कहते हैं ? उत्तर - अनुयोगद्वार सूत्र में परमाणु का लक्षण इस प्रकार बताया है - सत्येण सुतिक्खेण वि छेत्तुं भेत्तुं व जं किर न सक्का। तं परमाणु सिद्धा वयंति आदि पमाणाणं॥
अर्थ - सुतीक्ष्ण शस्त्र से भी जिसका छेदन-भेदन न किया जा सके उसको सिद्ध अर्थात् भवस्थ केवलज्ञानी परमाणु कहते हैं। तात्पर्य यह है कि पुद्गल का इतना सूक्ष्म अंश जिसके फिर दो विभाग नहीं किये जा सके वह परमाणु कहलाता है।
प्रश्न - परमाणु की पहचान क्या है ? उत्तर - कारणमेव तदन्त्यं, सूक्ष्मो नित्यश्च भवति परमाणुः। .. एकरसवर्णगन्धो, द्विस्पर्शः कार्यलिंगश्च॥ - अर्थ - सब पुद्गल स्कन्धों का अन्तिम कारण परमाणु है अर्थात् परमाणु से ही स्कन्ध बनते हैं। वह अत्यन्त सूक्ष्म है और नित्य है। उसमें एक वर्ण, एक गन्ध, एक रस और दो स्पर्श पाए जाते हैं। वह परमाणु छद्मस्थ जीवों के नजर नहीं आता है। पुद्गल स्कन्ध परमाणुओं से बनता है।
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