Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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बीअं ठाणं - द्वितीय स्थान
प्रथम उद्देशक एक स्थानक नाम वाले प्रथम अध्ययन का निरूपण करने के बाद अब सूत्रकार संख्या क्रम से द्वितीय स्थानक नाम वाले द्वितीय अध्ययन का निरूपण करते हैं। प्रथम अध्ययन में आत्मा आदि पदार्थों का एकत्व सामान्य से कहा गया है। प्रस्तुत अध्ययन में विशेष रूप से आत्मा आदि पदार्थों का द्विविध रूप से कथन किया जाता है। इस द्वितीय अध्ययन के चार उद्देशक हैं जिसमें प्रथम उद्देशक का प्रथम सूत्र इस प्रकार है - ___ जदत्थि णं लोए तं सव्वं दुपओयारं तंजहा - जीवच्चेव अजीवच्चेव। तसे चेव थावरे चेव, सजोणियच्चेव अजोणियच्चेव, साउयच्चेव अणाउयच्चेव, सइंदिय च्वेव अणिंदियच्चेव, सवेयगा चेव अवेयगा चेव, सरूवि चेव अरूवि चेव, सपोग्गला चेव अपोग्गला चेव, संसारसमावण्णगा चेव असंसारसमावण्णगा चेव, सासया चेव असासया चेव॥१२॥ . कठिन शब्दार्थ - जद् (जं)- जितने, अत्थि - हैं, लोए - लोक में, तं - वे, सव्वं - सब दुपओयारं (दुपडोयारं) - द्विपदावतार-द्विप्रत्यवतार दो पदों से कहे जाने वाले, च - और, सजोणियच्चेव - सयोनिक और, साउयच्चेव - आयुष्य सहित और अणाउय - आयु रहित, सइंदियइन्द्रिय सहित, अणिंदिय - इन्द्रिय रहित, सवेयगा - सवेदक, अवेयगा - अवेदक, सपोग्गला - सपुद्गल-कर्म पुद्गलों सहित, सासया - शाश्वत, असासया - अशाश्वत।
भावार्थ - लोक में जितने भी पदार्थ हैं वे सब दो पदों से कहे जाने वाले हैं अथवा दो पदों में उन सब का समावेश हो जाता है। जैसे कि - जीव और अजीव। त्रस और स्थावर। सयोनिक यानी चौरासी लाख जीव योनि में से किसी योनि में उत्पन्न होने वाले और अयोनिक यानी सिद्ध।
आयुष्य सहित और आयुष्य रहित - सिद्ध। इन्द्रियाँ सहित और इन्द्रियाँ रहित - सयोगी केवली और सिद्ध। सवेदक यानी स्त्रीवेदादि से सहित और अवेदक यानी वेदरहित सिद्ध आदि। सरूपी और अरूपी। सपुद्गल यानी कर्म पुद्गलों सहित और अपुद्गल यानी कर्मपुद्गलों से रहित। संसार समापनक यानी संसारी और असंसार समाफ्नक यानी सिद्ध। शाश्वत यानी जन्म मरण से रहित सिद्ध और अशाश्वत यानी जन्म मरण से युक्त संसारी जीव।
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