Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान २ उद्देशक २
७१ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 विष्पजहमाणे- छोड़ता हुआ, मणुस्सत्ताए - मनुष्यों में, पंचेंदियतिरिक्खजोणियत्ताए - पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में, गच्छेजा- जाता है ।
भावार्थ - नैरयिक जीव दो गति में जाते हैं और दो गति से आते हैं ऐसा भगवान् ने फरमाया है। जैसे कि नरक का आयुष्य बांधने वाला जीव नरकों में उत्पन्न होता हुआ मनुष्यों से अथवा पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों में से जाकर उत्पन्न होता है। वही नैरयिक नैरयिकपने को छोड़ता हुआ मनुष्यों में अथवा पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों में जाता है। इसी प्रकार असुरकुमारादि में भी कथन करना चाहिए किन्तु इतनी विशेषता है कि वह असुरकुमार आदि का जीव असुरकुमारपने को छोड़ कर मनुष्य भव में अथवा तिर्यञ्च योनि में जाता है। इस प्रकार बाकी सभी देवों के लिए भी कथन करना चाहिए। पृथ्वीकायिक जीव दो गति वाले और दो आगति वाले कहे गये हैं जैसे कि पृथ्वीकाय का आयुष्य बांध कर पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन होता हुआ जीव पृथ्वीकाय से अथवा नो पृथ्वीकाय से अर्थात् नारकी के एक दण्डक को छोड़ कर बाकी २३ दण्डकों से आकर उत्पन्न होता है। वही पृथ्वीकायिक जीव पृथ्वीकाय को छोड़ कर पृथ्वीकाय में अथवा नो पृथ्वीकाय में अर्थात् देव और नारकी को छोड़ कर बाकी १० दण्डकों में जाता है। इसी प्रकार यावत् मनुष्यों तक कहना चाहिए।
विवेचन - नैरयिक जीव दो गति में जाते हैं और दो गति से आते हैं। मनुष्य और तिर्यंच पंचेन्द्रिय के जीव ही नरक में उत्पन्न होते हैं, अन्य गति के नहीं। नैरयिक जीवं नैरयिकपने को छोड़ कर मनुष्य अथवा पंचेन्द्रिय तिर्यंच में जाता है। इसी प्रकार असुरकुमार से लेकर सभी देवों के विषय में जान लेना चाहिये अर्थात् मनुष्य और तिर्यंच पंचेन्द्रिय मर कर देव बन सकते हैं और देव मर कर मनुष्य और तिर्यंच गति में उत्पन्न हो सकते हैं। यहाँ तिर्यंच पंचेन्द्रिय नहीं कह कर केवल तिर्यंच गति कहने का आशय है - भवनपति से लेकर दूसरे ईशान देवलोक तक के देव पृथ्वी, पानी और वनस्पति में भी जन्म ले सकते हैं। इस सूत्र से यह भी सिद्ध हो जाता है कि नैरयिक मर कर नैरयिक और देव नहीं होता और देव मर कर देव और नैरयिक नहीं होता है। .
दुविहा णेरइया पण्णत्ता तंजहा - भवसिद्धिया चेव, अभवसिद्धिया'चेव, जाव वेमाणिया १। दुविहा रइया पण्णत्ता तंजहा - अणंतरोववण्णगा चेव, परंपरोववण्णगा चेव, जाव वेमाणिया २। दुविहा णेरड्या पण्णत्ता तंजहा - गइसमावण्णगा चेव, अगइसमावण्णगा चेव, जाव वेमाणिया ३। दुविहा जेरइया पण्णत्ता तंजहा - पढमसमयोववण्णगा चेव अपढमसमयोववण्णगा चेव, जाव वेमाणिया ४। दुविहा जेरइया पण्णत्ता तंजहा - आहारगा चेव अणाहारगा चेव, एवं जाव वेमाणिया ५। दुविहा णेरड्या पण्णत्ता तंजहा - उस्सासगा चेव,
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