Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान २ उद्देशक १
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विवेचन - जो दुर्गति में गिरते हुए प्राणी को धारण करे और सुगति में पहुंचावे, उसे धर्म कहते हैं। जैसा कि कहा है -
दुर्गती पततो जीवान्, यस्माद् धारयते ततः। धत्ते चैतान् शुभे स्थाने, तस्माद् धर्मः इति स्मृतः॥ .
अर्थ - दुर्गति में जाते हुए जीवों की रक्षा करके उनको शुभ स्थान में स्थापित करे उसे धर्म कहते हैं। अथवा - वत्थु सहावो धम्मो, खंती पमुहो दसविहो धम्मो।
जीवाणं रक्खणं धम्मो, रयणतयं च धम्मो॥ - अर्थ - १. वस्तु के स्वभाव को धर्म कहते हैं। २. क्षमा, निर्लोभता आदि दस लक्षण रूप धर्म है। ३. जीवों की रक्षा करना - बचाना यह भी धर्म है। ४. सम्यग् ज्ञान, सम्यग् दर्शन और सम्यक् चारित्र रूप रत्नत्रय को भी धर्म कहते हैं। अर्थात् जिस अनुष्ठान या कार्य से निःश्रेयसकल्याण की प्राप्ति हो वही धर्म है। धर्म के दो भेद हैं - १. श्रुतधर्म और २ चारित्र धर्म।
१. श्रुतधर्म - अंग उपांग रूप वाणी को श्रुतधर्म कहते हैं। वाचना, पृच्छना आदि स्वाध्याय के भेद भी श्रुत धर्म कहलाते हैं।
२. चारित्र धर्म - कर्मों के नाश करने की चेष्टा चारित्र धर्म है। मूल गुण और उत्तर गुणों के समूह को चारित्र धर्म कहते हैं अर्थात् क्रिया रूप धर्म ही चारित्र धर्म है।
- श्रुतधर्म के दो भेद हैं - १. सूत्र श्रुत धर्म - द्वादशांगी और उपांग आदि के मूल पाठ को सूत्र श्रुतधर्म कहते हैं। २. अर्थ श्रुत धर्म - द्वादशांगी और उपांग आदि के अर्थ को अर्थ श्रुत धर्म कहते हैं।
चारित्र धर्म के दो भेद हैं - १. अगार चारित्र धर्म - अगारी (श्रावक) के देश विरति धर्म को अगार चारित्र धर्म कहते हैं। २. अनगार चारित्र धर्म - अनगार (साधु) के सर्व विरति धर्म को अनगार चारित्र धर्म कहते हैं। सर्वविरति रूप धर्म में तीन करण तीन योग से त्याग होता है। - चारित्र धर्म (संयम) दो प्रकार का कहा है - १. सराग संयम और २. वीतराग संयम।
. १. सराग संयम - जो मायादि रूप स्नेह से युक्त है वह सराग, राग सहित जो संयम है वह सराग संयम कहलाता है। २. वीतराग संयम - जो राग रहित है वह वीतराग, वीतराग का जो संयम हैं वह वीतराग संयम कहलाता है।
सराग संयम दो प्रकार का कहा गया है - १. सूक्ष्म संपराय सराग संयम और २. बादर सम्पराय सराग संयम। सम्पराय का अर्थ कषाय होता है। जिस संयम में सूक्ष्म संपराय अर्थात् संज्वलन लोभ का सूक्ष्म अंश रहता है उसे सूक्ष्म संपराय सराग संयम कहते हैं। अर्थात् दसवें
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