Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान २ उद्देशक १ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 अनायुक्त प्रमार्जनता, आयसरीरअणवकंखवत्तिया - आत्म शरीर अनवकांक्षा प्रत्यया, परसरीरअणवकंखवत्तिया - परशरीर अनवकांक्षा प्रत्यया, लोभवत्तिया - लोभ प्रत्यया, कोहवत्तिया - क्रोध प्रत्यया, माणवत्तिया - मान प्रत्यया। "
भावार्थ - दो क्रियाएं कही गई हैं यथा - अपने हाथ से बनाई हुई वस्तु के द्वारा होने वाले आरम्भ से लगने वाली क्रिया स्वहस्तिकी और किसी वस्तु को फेंकने से लगने वाली क्रिया नैसृष्टिकी है। स्वहस्तिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है यथा - जीवस्वहस्तिकी यानी अपने हाथ में पकड़े हुए जीव से किसी दूसरे जीव को मारने से लगने वाली क्रिया और अपने हाथ में ग्रहण किये हुए अजीव तलवार आदि से जीव को मारने से लगने वाली क्रिया अजीवस्वहस्तिकी है। इसी प्रकार नैसृष्टिकी क्रिया के भी दो भेद हैं। जैसे कि - राजा की आज्ञा से यन्त्र द्वारा जल को कुएं आदि से बाहर निकालना जीव नैसृष्टिकी क्रिया है और धनुष से बाण को फेंकना अजीव नैसृष्टिकी क्रिया है। दो क्रियाएं कही गई हैं यथा - आज्ञा देने से लगने वाली क्रिया आज्ञापनी अथवा किसी को लाने से लगने वाली क्रिया आनायनी और विदारण यानी छेदन भेदन से लगने वाली क्रिया वैदारिणी। आज्ञापनी या आमायनी क्रिया दो प्रकार की कही गई है यथा - जीव आज्ञापनी या जीव आनायनी और अजीव आज्ञापनी या अजीव आनायनी। इसी प्रकार वैदारिणी क्रिया के भी दो भेद हैं। यथा - जीव वैदारिणी और अजीव वैदारिणी। दो क्रियाएं कही गई हैं यथा - अनाभोग प्रत्यया यानी बिना उपयोग से होने वाला कर्मबन्ध और स्वशरीर की अपेक्षा बिना लगने वाली क्रिया अनवकांक्षाप्रत्यया क्रिया है। अनाभोग प्रत्यया क्रिया दो प्रकार की कही गई है यथा - अनायुक्त आदानता यानी बिना उपयोग वस्त्रादि को ग्रहण करने से लगने वाली क्रिया और अनायुक्तप्रमार्जनता यानी बिना उपयोग पात्रादि को पूंजने से लगने वाली क्रिया। अनवकांक्षा प्रत्यया क्रिया दो प्रकार की कही गई है यथा - अपने शरीर को हानि पहुंचाने का कार्य करने से लगने वाली क्रिया आत्मशरीर अनवकांक्षा प्रत्यया और दूसरों के शरीर को हानि पहुंचाने का कार्य करने से लगने वाली क्रिया परशरीर अनवकांक्षा प्रत्यया कहलाती है। दो क्रियाएं कही गई हैं यथा - प्रेम से लगने वाली क्रिया प्रेम प्रत्यया और द्वेष से लगने वाली क्रिया द्वेष प्रत्यया। प्रेम प्रत्यया क्रिया दो प्रकार की कही गई है जैसे कि माया से लगने वाली क्रिया मायाप्रत्यया और लोभ से लगने वाली क्रिया लोभप्रत्यया। द्वेष प्रत्यया क्रिया दो प्रकार की कही गई है जैसे कि क्रोध से लगने वाली क्रिया क्रोधप्रत्यया और मान से लगने वाली क्रिया मानप्रत्यया कहलाती है। .
. विवेचन - अपने हाथ में ग्रहण किए हुए जीव को मारने पीटने रूप तथा अपने हाथ में ग्रहण किये हुए जीव से दूसरे जीव को मारने पीटने रूप क्रिया स्वहस्तिकी कहलाती है। इसके दो भेद हैं१. जीव स्वहस्तिकी और २. अजीव स्वहस्तिकी।
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