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आवश्यक दिग्दर्शन
स्वप्न ले रहा हैं ? मनुष्य के शरीर का वास्तविक रूप क्या है ? इसके लिए एक कवि की कुछ पंक्तियाँ पढ़लें तो ठीक रहेगा ।
आदमी का जिस्म क्या है जिसपै शैदा है जहाँ; एक मिट्टी की इमारत, एक मिट्टी का मकाँ । खून का गारा है इसमें और ईंटे हडिडयाँ; चंद साँसों पर खड़ा है, यह खयाली आसमाँ ! मौत की पुरजोर आँधी इससे जब टकरायगी ; देख लेना यह इमारत टूट कर गिर जायगी ! यदि बल नहीं तो क्या रूप से मनुष्य महान् नहीं बन सकता ? रूप क्या है ? मिट्टी की मूरत पर ज़रा चमकदार रंग रोगन ! इस को धुलते और साफ होते कुछ देर लगती है ? संसार के बड़े-बड़े सुन्दर तरुण और तरुणियाँ कुछ दिन ही अपने रूप और यौवन की बहार दिखा सके । फूल खिलने भी नहीं पाता है कि मुरझाना शुरू हो जाता है ! किसी रोग अथवा चोट का आक्रमण होता है कि रूप कुरूप हो जाता है, और सुन्दर अंग भग्न एवं जर्जर ! सनत्कुमार चक्रवर्ती को रूप का अहंकार करते कुछ क्षण ही गुजरने पाये थे कि कोढ़ ने श्रा घेरा । सोने-सा निखरा हुआ शरीर सड़ने लगा । दुर्गन्ध सह्य हो गई । मथुरा की जनपदकल्याणी वासवदत्ता कितनी रूपगर्विता थी । रात्रि के सघन अन्धकार में भी दीपशिखा के समान जगमग जगमग होती रहती थी ! परन्तु बौद्ध इतिहास कहता है कि एक दिन चेचक का श्राक्रमण हुआ । सारा शरीर क्षत विक्षत हो गया, सड़ने लगा, जगह-जगह से मवाद बंह. निकला । राजा, जो उसके रूप का खरीदा हुआ गुलाम था, वासवदत्ता को नगर के बाहर गंदे कूड़े के ढेर पर मरने को फिकवा देता हैं । यह है मनुष्य के रूप की इति क्या चमड़े का रंग और हड्डियों का गठन भी कुछ महत्व रखता है ? चमड़े के हलके से परदे के नीचे क्या कुछ भरा हुआ है ? स्मरण मात्र से घृणा होने लगती हैं !
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