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(१) माया कपटाइ रहित सरल समावी हो। (४) अकितूहल-इन्द्रनालादि कीतूहलरहीत हों। (१) तीस्थर वचन न बोले किंतु मधुर वचन बोले ।
(६) अक्रोधी-क्रोधको अपने कब्जे कर रखा हो। दुसरोंके क्रोध होनापर आप शांति करनेवाला हो।
(७) कृतज्ञ-दुसरेका उपकार मानते हुवे समय पाके प्रति उपकार करे गुणीयोंका गुण ग्रहन करे ।।
(८) श्रुत ज्ञान प्राप्तीकर अभिमान न करे किन्तु जगत मीवोका उद्धार करे दुसरोंको ज्ञान ध्यानमें साहिता करे। ___(९) अपना दोष कीसी दुमरे पर न डाले ।
(१०) अपने पर विश्वास रखनेवालोंसे द्रोहीपना न करे घोखामें न उतारे नेक सलाहा देवे ।
(११) कबी मित्र सज्जनोंकि मूल भी हो जावे तो गंभीरतासे माफी देवे किन्तु अवगुन न बोले ।
(१२) परदुःखकारी असम्य भाषा न बोले ।
(१३) धीर्यवान नितीवान बुद्धिवानोंकि सत्संग कर भाप मी इन्हीं गुणोंकि प्राप्ती करे। . . (१४) लज्जावान-लौकिक लोकोत्तर लज्जा रूप वस्त्रोंकों धारण करनेवाला हो ।
(१५) नित्य गुरूकुलवास सेवन कर गुरु आज्ञा माफीक चलनेवाला हो। गुरुके पास संकुचित शरीरसे बेठनेवाला हो।
इन्ही पन्दरे गुणोवालोंको शास्त्रकारों बहुश्रुति और विनयवान काहा है।