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(६८) (६) प्रवचनिक विषय शंका-प्रवचन भणे तथा जाने उसकों प्रवचनीक कहते है । तथा बहुश्रुतियोंकों प्रवचनिक कहते है, वह एक दुसरोंकि कल्प क्रिया प्रवृतिमें भिन्नता देखनेसे शंका होती है कि दोनों गीतार्थ होनेपर यह तपावत क्यो होना चाहिये । - समाधान-चारित्र मोहनियके यथा क्षापेशम उत्सर्गोपवाद समयकालकि अपेक्षा तथा छदमस्तपणके कारण प्रवचनिकों कि प्रवृतिमें भिन्नता दीखाइ दे तो भी अलठ्ठ आचरण हो वह स्वीकार करने योग होती है।
(७) कल्प विषय शंका=निनकल्पी मुनि नग्न रहते है और बिलकुल निवृति मार्गमें अनेक प्रकारके कष्ट सहन करते हुवे को भी मोक्ष (केवलज्ञान) नहीं होता है और स्थिवर कल्पी वस्त्रपा. त्रादि रखते हुवेकों तथा स्वल्प कष्टसे भि केवलज्ञान कि प्राप्ती बतलाई इसका क्या करण होगा। .. समाधान-कल्प है वह व्यबहारमें मोक्षसाधक निमत्त है परन्तु निश्चयमें कष्टक्रिया साधनभूत नहीं है मोक्ष मार्गमें आत्माध्यवसाय ही साधनभूत है अगर कष्टहीकों साधन माना जावे तों बहुतसे मुनि कष्ट करने पर भी केवलज्ञान नहीं पाये और कित. नेके बिनों कष्ट हीसे केवलज्ञान प्राप्त कर लिया है वास्ते कल्प हे सो व्यवहार है तथा जिन कल्प उत्सर्ग मार्ग है और स्थिवरकल्प है वह अपवाद मार्ग है तथा मोक्ष होना वह परिणाम विशेष है।
(८) मार्ग विषय शंका मार्ग-पुरुष परम्परासे चला आया समाचारीरूप मार्ग जिस्मे एकाचार्य कि समाचारिमें आवश्यकादि