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(१०) साध्वीयों दत्तचित्त (विषयादिसे ), (११) क्षित चित्त ( क्षोभ पानेसे ), (१२ ) यक्षाधिष्ठित, (१३) उन्मत्तपनेसे, (१४ ) उपसर्ग के योगसे, (१५) अधिकरण-क्रोधादिसे, (१६ ) सप्रायश्चित्तसे. (१७) अनशन करी हुइ ग्लानपनासे,
( १८ ) सलोभ धनादि देखनेसे, इन कारणोंसे संयमका त्याग करती हुइ, तथा आपघात करती हुइको साधु हाथ पकड रखे, चित्तको स्थिर करे, संयमका साहित्य देवे तो भगवानकी आज्ञाका उल्लंघन न करे, अर्थात् आज्ञाका पालन करे. .
(१६) साधु साधुवीयोंके कल्पके पलिमन्थु छे प्रकार के होते है. जैसे सूर्यकी कांतिको बादले दबा देते है, इसी प्रकार छ बातों साधुवोंके संयमको निस्तेज कर देती है. यथा (१) स्थान चपलता, शरीर चपलता, भाषा चपलता-यह तीनों चपलता संयमका पलिमन्थु है. अर्थात् (कुकइ ) संयमका पलिमन्थु है. (२) बार बार बोलना, सत्यभाषाका पलिमन्थु है. (३) तुण तुणाट अर्थात् आतुरता करना गोचरीका पलिमन्थु है. (४) चक्षु लोलुपता-इर्यासमितिका पलिमन्थु है. (५)