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तत्पश्चात् वह सर्व साधु-साधीयों भगवानकी मधुर देशना-हितकारी देशना श्रवण कर बडा ही हर्षको-आनन्दको प्राप्त हो, अपने जो राजा श्रेणिक और राणी चेलणाका स्वरुप देख निदान किया गया था, उसकी आलोचना कर, प्रायश्चित ग्रहन कर, अपना आत्माको विशुद्ध बनाके भगवानको वन्दन-नमस्कार कर अपना आत्माको अन्दर रमणता करते हुवे विचरने लगे.
___ यह व्याख्यान भगवान महावीरप्रभु राजगृह नगरके गुणशीलोद्यानमें बहुतसे साधु, बहुतसी साधीयों, बहुत श्रावक, बहुतसी श्राविकावों, बहुतसे देवों, बहुतसी देवीयों, सदेव मनुष्य असुरादिकी परिषद के मध्य बिराजमान हो आख्यान, भाषण, प्ररुपण, विशेष प्ररुपण ( आत्माको कर्मबन्ध निदानरुप अध्ययन ) अर्थ सहित, हेतु सहित, कारण सहित, सूत्र सहित, सूत्रके अर्थ सहित, व्याख्या सहित यावत् एसा उपदेश वारवार किया है.
।इति निदान नामका दशवा अध्ययन ।
नोट-निदान दो प्रकारके होते है (१) तीत्र रसवाला (२) मन्द रसवाला, जो तीव्र रसवाला निदान कीया हो, तो के निदानवालाको केवली प्ररुपित धर्मको प्राप्ति नहीं होती है,