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ऐसे कुलमें पुत्रपणे उत्पन्न होनेसे भविष्यमें मैं दीक्षा लेउंगा, तो मेरा दीक्षाका कार्यमें कोई भी विघ्न नहीं करेगा. वास्ते मेरेको ऐसा कुल मिले तो अच्छा. ऐसा निदान कर आलोचना न करे, यावत् प्रायश्चित्त न लेता हुवा काल कर उर्ध्वलोकमें महर्द्धिक थावत् महासुखवाला देवता दुवे. वहाँ चिरकाल देवसुख भोगवके वहांसे चवके उक्त कुलोमें उत्पन्न हुवे. उसको धर्मश्रवण करना मिले. श्रद्धाप्रतीत रुचि हुवे. मावत सर्वविरति-दीक्षाको ग्रहन करे. परन्तु पापनिदानका फलोदयसे उसी भवमें केवलज्ञानको प्राप्त नहीं कर सके.
वह दीक्षा ग्रहन कर इर्यासमिति यावत् गुप्त ब्रह्मचर्य पालन करते हुवे बहुत वर्ष चारित्र पालके अन्तमें आलोचनापूर्वक अनशन कर काल प्राप्त हो उर्ध्वगतिमें देवतापणे उत्पन्न हुवे. वह महर्डिक यावत् महासुखवाला हुवे.
हे आर्य ! इस पापनिदानका फल यह हुवा कि दीक्षा तो ग्रहन कर सके, परन्तु उसी भवकी अन्दर केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष जानेमें असमर्थ है. ॥ इति ॥
(१०) हे आर्य ! मैं जो धर्म कहा है, वह धर्म, शारीरिक और मानसिक ऐसे सर्व दुःखोंका अन्त करनेवाला है. उस धर्मकी अन्दर साधु-साध्वीयों पराक्रम करते हुवे सर्व प्रकारके कामभोगसे विरक्त, एवं राग द्वेषसे विरक्त, एवं