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ફરક
रहा व्रतोंको धारण कर सके; परन्तु निदानके पापोदयसे 'मुंडे भविता' अर्थात् संयम-दीक्षा लेनको असमर्थ है, वह श्रावक हो जीवादि पदार्थोंका जान हुवे, अशनादि चौदा प्रकारका प्रासुक, एषणीय आहार साधु साध्वीयोंको देता हुवा बहुतसे व्रत प्रत्याख्यान पौषध, उपवासादि कर अन्तमे पालोचना सहित अनशन कर समाधिमें काल कर उंच देवोंमे उत्पन्न होता है.
हे आर्य ! उस पाप निदानका फल यह हुवाकि वह सर्व विरति-दीक्षा लेनको असमर्थ अर्थात् अयोग्य हुवा. । इति । ____(8) हे आर्य ! मैं जो धर्म कहा है, वह सर्व दुःखोंका अन्त करनेवाला है. उस धर्मकी अन्दर साधु साध्वी पराक्रम करते हुवे ऐसा जानेकि-यह मनुष्य संबन्धी तथा देवसंबन्धी कामभोग अध्रुव, अनित्य, अशाश्वत है, पहिले या पीछे अवश्य छोडने योग्य है. अगर मेरे तप, संयम, ब्रह्मचर्यका फल हो, तो भविष्यमें मैं ऐसे कुलमें उत्पन्न हो. यथा--
(१) अन्तकुल-स्वल्प कुटंब, सोभी गरीब. (२) प्रान्तकुल-बिलकुल गरीब कुल. (३) तुच्छकुल-स्वल्प कुटंबवाले कुलमें. (४) दरिद्रकुल-निर्धन कुटंबवाला. (५) कृपणकुलधन होनेपरभी कृपणता. (६) भिक्षुकुल-भिक्षाकर आजीविका करे. (७) ब्राह्मणकुल-ब्राह्मणोंका कुल सदैव भिनु.