Book Title: Shighra Bodh Part 16 To 20
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ravatmal Bhabhutmal Shah

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Page 418
________________ રરર अन्त करनेवाला है. उस धर्मकी अन्दर पराक्रम करते हुवे मनुष्य संबन्धी कामभोग अनित्य है, यावत् जो उर्वलोकमें देवों है, जो पारकी देवीकों अपने वश कर नहीं भोगवते है तथा अपने शरीरसे बनाके देवीको भी नहीं भोगवते है. परन्तु जो अपनी देवी है, उसको अपने वशमें कर भोगवते है. अगर हमारे तप, संयम, ब्रह्मचर्यका फल हो, तो हम उक्त देवता हुवे. ऐसा निदान कर आलोचना न करे, यावत् प्रायश्चित्त न करते हुवे काल कर उक्त देवोंमें उत्पन्न होते है.. वहां देवतावों संबन्धी चिरकाल सुख भोगवके वहांसे काल कर उत्तम कुलजातिकी अन्दर मनुष्य हुवे. वह महर्द्धिक यावत् एकको बुलानेपर च्यार पांच आहे हाजर हुवे. हे भगवन् ! उस मनुष्यकों कोइ श्रमण महान् केवली प्ररुपित धर्म सुना शके ? हा, सुना सके. क्या वह धर्मपर श्रद्धाप्रतीत रुचि करे ? हाँ, करे. वह दर्शन श्रावक हो सके. परन्तु निदानके पाप फलसे वह पांच अणुव्रत, सात शिक्षाबत यह श्रावकके बारहा व्रत तथा नोकारसी आदि प्रत्याख्यान करनेको समर्थ नहीं होते है. वह केवल सम्यक्त्वधारी श्रावक होते है. जीवादि पदार्थका जानकार होते है. हाडहाड किमीजीधर्मकी अन्दर राग जागता है. ऐसा सम्यक्त्वरुप श्रावकपणा पालता हुवा बहुत कालतक आयुष्य पाल वहांसे मरके देवोंकी अन्दर जाते है.

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