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विना अपराध मार डालते है. निध्वंस परिणामी, किसी प्रका.. रकी घृणा रहित ऐसे अनार्य नास्तिक होते है..
ऐसे अक्रियावादीयोंके बाहिरकी परिषद जो दासदासी, प्रेषक, दूत, भट्ट, सुभट, भागीदार, कामदार, नोकर, चाकर, मेता, पुरुष, कृषीकार-इत्यादि जो लघु अपराध कीया हो, तो उसको बडा भारी दंड देते है. जैसे इसको दंडो, मुंडो, तर्जना, ताडना करो, मारो, पीटो मजबूत बन्धन करो. इसको खाडेमें भाखसीमें डाल दो, इसके शरीरकी हडीयों तोड दो-एवं हाथ, पांव, नाक, कान, ओष्ठ, दान्त-आदि अंगोपांगको छेदन करो, एवं इसका चमडा निकालो, हृदयको भेदो, आंख, दान्त, जीभको छेदन करो, शूली दो, तलवारसे खंड खंड करो, इसको अग्निमें जला दो, इनको सिंहकी पूछमें बांधो, हस्तीके पांव नीचे डालो, इत्यादि लघु अपराध करनेपर अपराधीको अनेक प्रकारके कुमोतसे मारनेका दंड देते है. ऐसी अनार्य नास्तिकोंकी निर्दय वृत्ति है.
आभ्यन्तर परिषद् जैसे माता, पिता, बान्धव, भगीनी, भायो, पुत्री, पुत्रवधू-इत्यादि. इन्होंसे कभी किंचिन्मात्र अपराध हो जाय, तो आप स्वयं भारी दंड देते है. जैसे शीतकालमें शीतल पाणी तथा उष्णकालमें उष्ण पाणी इसके शरीरपर डालो, अग्निकी अन्दर शरीर तपावों, रसीकर, वेंत कर, नाडीकर, चाबक कर, छडीकर, लताकर, शरीरके पसवाडे प्रहार करो, चामडीको उखेडो, हडीकर, लकडीकर, मुष्टिकर,