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निवृत्त नहीं, अर्थात जावजीवतक अठारा पापको सेवन करनेवाले, सर्व कषाय, स्नान, मजन, दन्तधावन, मालीस, विलेपन, माला, अलंकार, शब्द, रुप, गंध, रस, स्पर्शसे जावजीवतक निवृत्त नहीं अर्थात् किसी कीस्मका त्याग नहीं है.
सर्वप्रकारकी असवारी गाडी, गाडा, रथ, पालखी, तथा पशु, हस्ती, अश्व, गौ, महिष [ पाडा] छाली, तथा गवाल, दासदासी, कामकारी-इत्यादिसेभी निवृत्ति नहीं करी है.
सर्व प्रकारके क्रय-विक्रय, वाणिज्य, व्यापार, कृत्य, अकृत्य तथा सुवर्ण, रुपा, रत्न, माणिक, मोती, धन, धान्य इत्यादि, तथा सर्व प्रकारसे कुडा तोल कुडा मापसेभी निवृत्ति
नहीं करी है.
सर्व प्रकारके आरंभ, सारंभ, समारंभ, पचन, पचावन, करण, करावण, परजीवोंको मारना, पीटना, तर्जना करना, वध बंधनसे परको क्लेश देना-इत्यादिसे निवृत्ति नहीं करी है.
जैसा वर्णन किया है, वैसेही सर्व सावध कर्त्तव्य के करनेवाले, बोधिबीज रहित, परजीवोंको परिताप उत्पन्न करनेसे जावजीव पर्यंत निवृत्त नहीं है. जैसे दृष्टान्त-कोइ पुरुष वटाणा, मसूर, चीणा, तील, मुंग, उडद-इत्यादि अपने भक्ष्यार्थ दलते है, चूरण करते है. इसी माफिक मिथ्यादृष्टि, अनार्य, मांसभक्षी ज्यों तीतर, वटेवर, लवोक, पारेवा, कपीजल, मयूर, मृग, सूबर, महिष, काच्छप, सर्प-आदि जानवरोंको