Book Title: Shighra Bodh Part 16 To 20
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ravatmal Bhabhutmal Shah

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Page 373
________________ सीसे मोक्षमन्दिरके सोपानकी श्रेणि उपागत हा, शिवमन्दिरको प्राप्त करो. इति दशाश्रुत स्कंध-पंचम अध्ययनका संक्षिप्त सार. [६] छठा अध्ययन. पंचम गणधर अपने ज्येष्ठ शिष्य जम्बू अणगारको श्रावकोंकी इग्यारा प्रतिमाका विवरण सुनाते है. इग्यारा प्रतिमाकी अन्दर प्रथम दर्शनप्रतिमाका व्याख्यान करते है.* वादीयोंमें अज्ञानशिरोमणि, नास्तिकमति, जिसको अक्रियावादी कहते हैं. हेय, उपादेय कोई भी पदार्थ नहीं है, ऐसी उन्होंकी प्रज्ञा है, ऐसी उन्होंकी दृष्टि है. वहां सम्यक्त्व वादी नहीं है, नित्य ( मोक्ष ) वादी भी नहीं है. जो शाश्वतें पदार्थ है उसको भी नहीं मानते है. उस अक्रियावादी नास्तिकोंकी मान्यता है कि यहलोक, परलोक, माता, पिता, अरिहंत, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव, नारक, देवता कोइ भी नहीं है, और सुकृत करनेका सुकृत फल भी नहीं है. दुष्कृत करनेका दुष्कृत फल भी नहीं है, अर्थात् पुण्य-पापका फल नहीं है. न परभवमें कोई जीव उत्पन्न होता है, वास्ते नरक * प्रथम मिथ्यात्वका स्वरुप ठीक तोरपर न समझा जावे, वहांतक मिध्यात्वसे अरुचि और सम्यक्त्वपर रुचि होना असंभव है.. इसी लिये शास्त्रकारों दर्शनप्रतिमाकी आदिमें वादीयों के मतका परिचय कराते है.

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