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एवं सात मासिक भिक्षु प्रतिमा. परन्तु भोजन पाणीकी दाता सात सात समझना. शेषाधिकार मासिक प्रतिमावत् समझना. इति । ७ ।
(८) प्रथम सात रात्रि नामकी आठवी भिक्षु प्रतिमा. सात अहोरात्र शरीरको बोसिरा देते हैं. बिलकुल निर्मम, निःस्पृही रहते हैं. पानी रहित एकान्तर तप करते है. ग्राम यावत् राजधानी के बाहार दिन में सूर्य के सन्मुख आतापना और रात्रि में ध्यान करते है वह भी आसन लगाके ( १ ) चिते सुता रहेना. ( २ ) एक पसवाडेसे सोना. ( ३ ) सर्व रात्र कायोत्सर्ग में बैठ जाना. उस समय देव, मनुष्य, तिर्थंच के उपसर्ग हो, उसे सम्यक् प्रकारसे सहन करना परन्तु ध्यानसे चोभित होना नहीं कल्पै. अगर मल-मूत्रकी बाधा हो तो पूर्व प्रतिलेखन करी हुई भूमिकापर निर्वृत्त हो, फिर उसी आसन से रात्रि निर्गमन करना कल्पैं. यावत् पूर्ववत् अपनी प्रतिज्ञा का पालन करने पर आज्ञाका आराधक हो सकता है ॥ ८ ॥
( ६ ) दूसरे सात रात्रि नामकी नौवी भिक्षु प्रतिमा स्वीकार करनेवाले मुनियोंको यावत् रात्रिमें दंडासन, लगड आसन ( प्रजातिके ढांचा आकार शिर और पांव भूमिपर और सर्व शरीर उर्ध्व होता है. ) उक्कड आसन से कायोत्सर्ग करे. शेषाधिकार पूर्ववत् यावत् आज्ञाका आराधक होता है ॥६॥
(१०) तीसरे सात रात्रि नामकी दशवी भिक्षु प्रतिमा