Book Title: Shighra Bodh Part 16 To 20
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ravatmal Bhabhutmal Shah

View full book text
Previous | Next

Page 397
________________ जो कोइ अनीश्वरको राजा अपना राज्य लक्ष्मी दे के तथा नगरके लोक मिलके उसको मुखीया ( पंच ) बनाया हो फिर राज्य-लक्ष्मी आदिका गर्व करता हुवा उस लोगोंको दंडे मारे, मरवावे तथा उन्होंका अहित करे, तो महा मोहनीय कर्म बान्धे. (१५) जैसे सर्पिणी इंडा उत्पन्न कर आपही उसीका भक्षण करे, इसी माफिक स्त्री भर्तारकों मारे, सेनापति राजाकों मारे, शिष्य गुरुको मारे, तथा विश्वासघात करे, उन्होंसे प्रतिकूल बरते तो महा मोहनीय. (१६) जो कोइ देशाधिपति गजाकी घात करनेकी इच्छा करे तथा नगरशेठ आदि महा पुरुषों की घात चिन्तये तो महा मोहनीय -(१७) जैसे समुद्रमें द्वीप आधारभूत होते है, इसी माफिक बहुत जीवोंका आधारभूत ऐसा बहुत में देशोंका राजाकी घात करने की इच्छावाला जीव महामोहनीय. (१८) जो कोइ जीव परम वैराग्यको प्राप्त हो, सुममाधिपन्त साधु बनना चाहे अर्थात् दीक्षा लेना चाहे, उसको कुयुक्तियोंसे तथा अन्य कारणों से चारित्रसे परिणाम शीतल करवा दे, तो महा मोहनीय. (१६) जो अनंत ज्ञान-दर्शनधारक सर्वज्ञ भगवानका अपर्णवाद बोले तो महा मोहनीय { २० ) जो सर्वज्ञ भगवंत तीर्थंकरोंने निर्देश किया हुवा स्याद्वादरुप भवतारक धर्मका अवर्णवाद बोले, तो महामोहनीय. (२१) जो आचार्य महाराज, तथा उपाध्यायजी महाराज, दीक्षा, शिक्षा तथा सूत्रज्ञानके दातार, परमोपकारीके अपयश करे, हीलना, निंदा, खीं

Loading...

Page Navigation
1 ... 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424