Book Title: Shighra Bodh Part 16 To 20
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ravatmal Bhabhutmal Shah

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Page 415
________________ व्याधिका खजाना है. वहभी पहिले व पीछे अवश्य छोडना पडेगा. इससे तो वह उध्र्वलोक निवास करनेवाले देवता. वों अच्छे है, कि वह देवता अन्य किसी देवतावोंकी देवीयोंको अपने वशमें कर सर्व कामभोग उस देवीके साथ भोगवते है. तथा आप स्वयं अपने शरीरसे देवरुप और देवीरुप बनाके उसके साथ भोग करे तथा अपनी देवीयोंके साथ भोग करे. अर्थात् ऐसा देवपना अच्छा है. वास्ते मेरे तप, सं. यम, ब्रह्मचर्यका फल हो तो भविष्य कालमें मेंभी यहांसे मरके उस देवोंकी अन्दर उत्पन्न हो. पूर्वोक्त तीनों प्रकारकी देवीयोंके साथ मनोहर भोग भोगवते हुवे विचलं. । इति । हे आर्य ! जो कोइ साधु-साध्वीयों ऐसा निदान कर उसकी आलोचना न करे, यावत् पापका प्रायश्चित्त न लेवे और काल करे, वह देवोंमें उत्पन्न हुवे. वह महर्द्धिक, महाज्योति यावत् महान् सुखवाले देवता होवे. वह देवता अन्य देवतावोंकी देवीयोंको तथा अपने शरीरसे वैक्रिय बनाइ हुइ देवीयोंसे और अपनी देवीयोंसे देवता संबन्धी मनोवांछित भोग भोगवे. चिरकाल देवसुख भोगवके अन्तमें वहांसे चक्के उग्रकुलादि उत्तम कुलमें जन्म धारण करे यावत् आते जातेके साथे बहुतसे दास-दासीयों, वहांतककी एक बुलानेपर च्यार पांच आके हाजर होवे. हे भगवन् ! उस पुरुषकों कोइ केवली प्ररुपित धर्म सुना सके ? हां, धर्म सुना सकते है. हे भगवन् ! वह धर्म भोग भोगवनम कुल में जन्म हातककी एक .

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