Book Title: Shighra Bodh Part 16 To 20
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ravatmal Bhabhutmal Shah

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Page 399
________________ १०३ निन्दा करे, कथवा कोई व्रत पालके देवता हुवा है, उसका अवर्णवाद बोले तो, महामोहनीय. (३०) जिसके पास देवता नहीं आता है, जिन्होंने देवतावोंको नहीं देखा हो और अपनी पूजा, प्रतिष्ठा मान बढानेके लीये जनसमूहके आगे कहेकिच्यार जातिके देवतावोंसे अमुक जातिका देवता मेरे पास आता है, तो महामाहेनीय कर्म उपार्जन करे. __ यह ३० कारणों से जीव महा मोहनीय कर्म उपार्जन (बन्ध ) करता है. वास्ते मुनिमहाराज इस कारणोंको सम्यक् प्रकारसे जानके परित्याग करे. अपना आत्माका हितार्थ शुद्ध चारित्रका खप करे. अगर पूर्वावस्थामें इस मोहनीय कर्म बन्धके स्थानोंको सेवन कीया हो, उस कर्मक्षय करनेको प्रयत्न करे. आचारवन्त, गुणवन्त, शुद्धात्मा क्षान्त्यादि दश प्रकारका पवित्र धर्मका पालन कर पापका परित्याग, जैसा सर्प कांचलीका. त्याग करता है, इसी माफिक करे. इस लोक और परलोकमें कीर्तिभी उसी महा पुरुषोंकी होती है कि जिन्होंने ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप कर इस मोहनरेन्द्रका मूलसे पराजय कीया है. अहो शूरवीर ! पूर्ण पराक्रमधारी ! तुमारा अनादि कालका परम शत्रु जो जन्म, जरा, मृत्युरुप दुःख देनेवालाका जल्दी दमन करो. जिससे चेतन अपना निजस्थानपर गमन करता हुवेमें कोइ विध्न न करे. अर्थात् शाश्वत सुखोंमे विराजमान होवे. ऐसा फरमान सर्वज्ञका है. ॥इति नौवा अध्ययन समाप्त ॥

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