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आदर, सत्कार कीया और बधाइकी अन्दर इतना द्रव्य दीया कि उन्होंकी कितनी परंपरा तक भी खाया न जाय. बादमें उन्होंको विसर्जन किया और नगर गुतीया ( कोटवाल ) को बुलायके आदेश करते हुवे कि- तुम जावों राजगृह नगर अभ्यंतर और बाहारसे साफ करवाओं, सुगन्धि जलसे छंटकाव करवाओं, जगे जगेपर पुष्पोंके ढेर लगवावो, सुगन्धि धूपसे नगर व्याप्त कर दो-इत्यादि आज्ञाको शिरपर चढाके कोटवाल अपने कार्यमें प्रवृत्ति करता हुवा. ___ राजा श्रेणिक सेनापतिको बुलाके आज्ञादि कि तुम जावे-हस्ती, अश्व, रथ और- पैदल-यह च्यार प्रकारकी सैना तैयार कर हमारी आज्ञा वापीस सुप्रत करो. सैनापति राजाकी आज्ञाको सहर्ष स्वीकार, अपने कार्यमें प्रवृत्ति कर आज्ञा सुप्रत कर दी.
राजा श्रेणिक अपने रथकारको बुलवाय हुकम किया कि-धार्मिक रथ तैयार कर उत्थानशालामें लाके हाजर करो. राजाके हुकमको शिरपर चढाके सहर्ष रथकार रथशालामें जाके रथकी सर्व सामग्री तैयार कर, बहेलशालामें गया. वहांसे अच्छे, देखनेमें सुंदर चलनेमे शीघ्र चालवाले युवक वृषभोंको निकाल, उसको स्नान कराके अच्छे भूषण वस्त्र ( झूलों) धारण करा रथके साथ जोड, रथ तैयार कर, राजा श्रेणिकसे अर्ज करी कि-हे नाथ! आपकी आज्ञा माफिक यह रथ तैयार है. रथकारकी यह बात श्रवण कर अर्थात् रथकी सजवटको देख