Book Title: Shighra Bodh Part 16 To 20
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ravatmal Bhabhutmal Shah

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Page 408
________________ - इस धर्मकी अन्दर ग्रहण और आसेवन शिक्षाके लीये सावधान साधु, क्षुधा, पिपासा, शीत, उष्ण आदि अनेक परीषह-उपसर्गको सहन करते, महान् सुभट कामदेवका पराजय करते हुबे संयम मार्गमे निर्मल चित्तसे प्रवृत्ति करे, प्रवृत्ति करता हुवा उग्रकुलमें उत्पन्न हुवा उग्रकुलके पुत्र, महामाता अर्थात् उंच जाति की मातावोंसे जिन्होंका जन्म हुवा है. एवं भोगकुलोत्पन्न हुवा पुरुष जो बाहारसे गमन कर नगरमें आते हुवे को तथा नगरसे बाहार जाते हुवे को देखे. जिन्हों के आगे महा दासी दास, नोकर चाकर, पैदलोंके परिवारसे कितनेक छत्र धारण किये है. एवं भंडारी, दंडादि, उसके आगे अश्व, असवार, दोनो पास हस्ती, पीछे रथ, और रथधर, इसी माफिक बहुतसे हस्ती, अश्व रथ और पैदलके परिवारसे चलते है. जिसके शिरपर उज्ज्वल छत्र हो रहा है, पासमे रहे के श्वेत चामर ढोलते है, जिसको देखने के लीये नर नारीयों घरसे बाहार आते है, अन्दर जाते है, जिन्होंकी कान्ति-प्रभा शोभनीय है, जिन्होंने किया है स्नान, मञ्जन, देवपूजा, यावत् भूषण वस्त्रोंसे अलंकृत हो महा विस्तारवन्त, कोठागार, शा. लाके सामान्य मकानकी अन्दर यावत् रत्न जडित सिंहासनपर रोशनीकी ज्योतिके प्रकाशमें स्त्रीयोंके वृन्दमे, महान् नाटक, गीत, वार्जित्र, तंत्री, ताल, तूटीत, मृदंग, पहडा-इत्यादि प्रधान मनुष्य संबन्धी भोग भोगवता विचरता है. वह एक मनुष्यको बोलाता है, तब च्यार पांच स्त्री पुरुष आके खडे

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