Book Title: Shighra Bodh Part 16 To 20
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ravatmal Bhabhutmal Shah

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Page 412
________________ ११६ करना, द्रव्योपार्जन करना, देश देशान्तर जाना, सब लोगों (आश्रितों ) का पोपण करना-इत्यादि पुरुष होना अच्छा नहीं है. अगर हमारे तप, संयम, ब्रह्मचर्यका फल हो, तो भविप्यमें हम स्त्रीपनेको प्राप्त करे, वहभी पूर्ववत् रुप, यौवन, लावण्य, चतुराइ, जोकि जगतमें एकही पाइ जाय ऐसी. फिर पुखोंके साथ निर्विप्रतासे भोग भोगवती विचरे. । इति साधु । यह निदान साधु करे. उस स्थानकी आलोचना न करे, यावत् प्रायश्चित्त न लेवे. विराधक भावसे काल कर महर्द्धिक देवतावॉमें उत्पन्न हुने. वह देव संबन्धी दिव्य सुख भोगके आयुष्य पूर्ण कर मनुष्य लोकमे अच्छा कुल-जातिको अच्छे रुप, योवन, लावण्यको प्राप्त हुइ, उस पुत्रीको उंच कुलमें भार्या करके देवे, पूर्व निदानकृत फलसे मनुष्य संबन्धी कामभोग भोगवती आनन्दमें विचरे. - उस स्त्रीको अगर कोइ दोनो काल धर्म सुनानेवाला मिले, तोभी वह धर्म नहीं सुने, अर्थात् धर्म सुननेके लीये अयोग्य है. बहुत काल महारंभ, महा परिग्रह, महा काम भोगमें गृद्ध, मूञ्छित हो काल कर दक्षिणकी नारकीमें नैरियापने उत्पन्न होगा. भविष्यके लीयेभी दुर्लभबोधि होगा. हे आर्य ! इस निदानका यह फल हुवाकि वह धर्म सुननेके लीयेभी अयोग्य है. अर्थात् धर्म सुननाभी उदय नहीं आता है. । इति ।

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