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सना करे, वह बाल अज्ञानी महा मोहनीय-(२२) जो आचार्योपाध्यायके पास ज्ञान, ध्यान कर आप अभिमान, गर्वका मारा उसी उपकारी महा पुरुषोंकी सेवा भक्ति, विनय, वैयावच्च, यश कीर्ति न करे तो महा मोहनीय. (२३) जो कोइ अबहुश्रुत होनेपरभी अपनी तारीफ बढाने कारण लोगोंसे कहैकिमैं बहुश्रुत अर्थात् सर्व शास्त्रोंका पारगामी हुं, ऐसा असद्वाद वदे तो महा मोहनीय. (२४) जो कोइ तपस्वी होनेका दावा रखे, अर्थात् अपना कृश शरीर होनेसे दुनीयाँको कहै कि मैं तपस्वी हूं-तो महा मोह. (२५) जो कोइ साधु शरीरादिसे सुदृढ सहननवाला होनेपरभी अभिमानके मारे विचारोकिमैं ज्ञानी हूं, बहुश्रुत हूं, तो ग्लानादिकी वैयावच क्यों करुं ? इसनेभी मेरी वैयावच्च नहीं करीथी, अथवा ग्लान, तपस्वी, वृद्धादिकी वेयावच्च करनेका कबूल कर फिर वैयावच्च न करे तो महा मोहनीय कर्म उपार्जन करे. (२६) जो कोइ चतुर्विध संघमें क्लेशवृद्धि करना, छेद, भेद डलाना, फुट पाड देनाऐसा उपदेश दे कथा करे करावे तो महा मोहनीय-(२७) जो कोइ अधर्मकी प्ररुपणा करे तथा यंत्र, मंत्र, तंत्र, वशीकरण प्रयुंजे ऐसे अधर्मवर्धक कार्य करे, तो महामोहनीय. (२८) जो कोई इस लोक-मनुष्य संबन्धी परलोक-देवता संबन्धी, कामभोगसे अतृप्त अर्थात् सदैव कामभोगकी अभिलापारख, जहाँ मरणावस्था आगइ हो, वहांतकभी कामाभिलाप रखे, तो महा मोहनीय. (२६) जो कोइ देवता महाऋद्धि, ज्योति, कान्ति, महाबल, महायशका धणी देव है, उसका अवर्णवाद बोले,