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यावत् रात्रिमें आसन ( १ ) गोदोहासन, जैसे पांवोंपर बेठके गायको दोते है. ( २ ) वीरासन, जैसे खुरसीपर बेठनेके बाद खुरसी निकाल ली जावे. ( ३ ) आम्रखुज, जैसे अधोशिर और पांव उपर. यह तीन आसन करे. शेषाधिकार पूर्वकी माफिक. यावत् आराधक होता है..
(११) अहोरात्र नामकी इग्यारवी भिक्षु प्रतिमा. छठ तप कर ग्रामादिके बाहार जाके ध्यान करे. कुछ शरीरको नमाता हुवा दोनों पांवोके आगे आठ अंगुल, पीछे सात अंगुल अन्तर रख ध्यानारुढ हो. वहांपर उपसर्गादि हो उसे सम्यक् प्रकारसे सहन करे. यावत् पूर्वकी माफिक आराधक होता है.
(१२) एक रात्रि नामकी बारहवी भिक्षु प्रतिमा-अहम तप कर ग्रामादिके बाहार श्मशानमें जाके शरीर ममत्व त्याग कर पूर्वकी माफिक पांवोंको और दोनों हाथोंको निराधार, एक पुद्गलोपर दृष्टि स्थापनकर आंखोंको नहीं टमकारता हुवा ध्यान करे. उस समय देव, मनुष्य, तियेच संबन्धी उपसर्ग हो उसे अगर सम्यक् प्रकारसे सहन न करे, तो तीन स्थानपर अहित, असुख, अकल्याण, अमोक्ष, अननुगामित होते है. वह तीन स्थान-(१)उन्माद (वेभानी), (२) दीर्घ कालका रोगका होना, (३) केवली प्ररुपित धर्मसे भ्रष्ट होता है. अगर एक रात्रिकी भिक्षु प्रतिमाको सम्यक् प्रकारसे आरा. धन करे, उपसगाँसे क्षोभित न हो, तो तीन स्थान-हित,