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भूमिकाका प्रतिलेखन कर कारण हो उस समय वहां जाके निवृत्त होना कल्पै. फिर उसी स्थानपर आके कायोत्सर्ग करे.
(१७) मासिक प्रतिमा स्वीकार किये हुवे मुनि विहार कर आया हो उसके पांव सचित्त रज, पृथ्व्यादि संयुक्त हो, उस समय गृहस्थों के कुलमें भिक्षा के लीये जाना नहीं कल्पै. अगर जैसा मालुम हो कि वह सचित्त रज पसीनेसे, मैलसे कर्दमसे उसके जीव विध्वंस हो गये है, तो उस मुनिको गृहस्थोंके कुलमें भिक्षा के लिये आनाजाना कल्पै.
(१८) मासिक प्रतिमा स्वीकार किये हुवे मुनिको शीतल पानीसे तथा गरम पानीसे हस्त, मुख, दान्त, नेत्र पांवादि शरीर धोना नहीं कल्पै. अगर शरीर के अशुचि मलमूत्रादिका लेप हो, तो धोना कल्पै तथा भोजन के अंत मे हस्त, मुखादि साफ करे..
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(१६) मासिक प्रतिमा स्वीकार किये हुवे मुनिके सामने अश्व, हस्ती, बैल, भैंसा, सूवर, कुत्ता, व्याघ्र, सिंह तथा मनुष्य जो दुष्ट र स्वभाववाला और उन्मत्त हुवा आता हो, तो प्रतिमाधारी मुनि चलता हुवाकों पीछा हठना नहीं कल्पै. अर्थात् अपने शरीर की रक्षा निमित्त पीछा न हठे. अगर अदुष्ट जीव हो, मुनिको देख भागता हो, भीडकता हो तो उस जीवोंकी दया निमित्ते मुनि युग ( च्यार हस्त ) पीछा हठ सकते हैं.