Book Title: Shighra Bodh Part 16 To 20
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ravatmal Bhabhutmal Shah

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Page 387
________________ पृथ्वीशिलाका पट. (२) काष्ठका पाट. (३) यथा तैयार किया हो वैसा. (११) मासिक प्रतिमा स्वीकार किये हुवे मुनि जिस मकानमें ठहरे हो, वहांपर कोई स्त्री तथा पुरुष आया हो तो उसके लिये मुनिको उस मकानसे नीकलना तथा प्रवेश करना नहीं कल्पै. भावार्थ-कोइ पुन्यवान् आया हो, उसको सन्मान देना या दबाबके लिये उस मकानसे अन्य स्थानमें नीकलना तथा अन्य स्थानमें प्रवेश करना नहीं कल्पै. (१२) मासिक प्रतिमा स्वीकार किये हुवे मुनि ठहरा हो उसी उपाश्रयमें अग्नि प्रज्वलित हो गइ हो तो भी उस अग्निके भयसे अपना शरीरपर ममत्वभावके लिये वहांसे नीकलना तथा अन्य स्थानमें प्रवेश करना नहीं कल्पै. अगर कोइ गृहस्थ मुनिको देखके विचार करे कि इस अग्निमें यह मुनि जल जायगा. मैं इसको निकालं. ऐसा विचारसे मुनिकी बांह पकडके निकाले तो उस मुनिको नहीं कल्पै कि उस निकालनेवाले गृहस्थको पकडके रोक रखे. परन्तु मुनिको कल्पै कि आप इयोसमिति सहित चलता हुवा इस मकानसे निकल जावे.. . भावार्थ-प्रतिमाधारी मुनि अपने लिये परिषह सहन करे, परन्तु दूसरा अपनेको निकालनेको आया हो, अगर उस समय आप नहीं नीकले, तो आपके निष्पन्न उस गृहस्थकों

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