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चित्तको परम समाधि होती है. केवलज्ञानकी प्राप्ति किसको होती है ? जो मुनि अप्रमत्त भावसे संयम आराधन करते हुवे ज्ञानावरणीय कर्मका सर्वांश क्षय कर दीया है, ऐसा क्षपकश्रेणिप्रतिपन्न मुनियोंको केवलज्ञान उत्पन्न होता है. वह सर्व लोकालोकके पदार्थोंको हस्तामलककी माफिक जानते है.
(E) केवलदर्शन-पूर्वे नहीं हुवा ऐसा केवलदर्शन होनेसे लोकालोकको देखते हुवेको चित्तसमाधि होती है. केवलदर्शनकी प्राप्ति किसको होती है ? जो मुनियों अप्रमत्त गजारूढ हो, आपकश्रेणि करते हुवे बारहवे गुणस्थानके अन्तमें दर्शनावरणीय कर्मका सर्वांश क्षय कर, केवलदर्शन उत्पन्न कर लोकालोकको हस्तामलककी माफिक देखते है..
(१० ) केवलमृत्यु-(केवलज्ञान संयुक्त ) पूर्वे नहीं हुवा ऐसा केवलमृत्युकी प्राप्ति होनेसे चित्तमें समाधि होती है. केवलमृत्युकी प्राप्ति किसको होती है ? जो बारह प्रकारकी भिक्षुप्रतिमाका विशुद्धपणेसे आराधन कीया हो और मोहनीय कर्मका सर्वथा क्षय कीया हो, वह जीव केवलमृत्यु मरता हुवा, अर्थात् केवलज्ञान संयुक्त पंडित मरण मरता हुवा सर्व शारीरिक और मानसिक दुःखोंका अंत करते, वली समाधि जो शाश्वत, अव्याबाध सुखोमें विराजमान हो जाता है. मोहनीय कर्म क्षय हो जानेसे शेष कर्मोका जोर नहीं चलता है. इस पर शास्त्रकारोंने दृष्टान्त बतलाया है. जैसेकि
(१) तालवृक्षके फलके शिरपर सुइ (सूचि) छेद चिटका