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भूतकालमें किये भव संबन्धको देख सक्ते है. उसीसे चित्तसमाधि होती है. जातिस्मरणज्ञान किसको होता है कि भूतकालमें संज्ञीपणे किये हुवे भवका संबन्धको किसी वस्तुके देखनेसे तथा किसीके पास श्रवण करनेसे, समाधि पूर्वक चिन्तवन करनेसे प्रशस्ताध्यवसाय होनेसे जातिस्मरणज्ञान होता है. जैसे महाबल कुमरको हुवा था.
(३) अहा तचं स्वप्नी-जैसे भगवान् वीरप्रभुने दश स्वम देखे थे तथा मोक्षगमन विषय चौदा स्वप्न कहा है, ऐसा स्वप्न पूर्वे न देखा हो उसको देखनेसे चित्तसमाधि होती है, ऐसे उत्तम स्वम किसको प्राप्त होता है ? कि जो संवृतात्माके धारक मुनि यथातथ्य स्वमा देख सकता है. वह इस घोर संसार-समुद्रसे शीघ्रतासे पार होकर मोक्षको प्राप्त कर लेता है.
(४) देवदर्शन-जैसे देवताओं संबंधी ऋद्धि, ज्योति, कान्ति (क्रान्ति । प्रधान देवसंबंधी भाव पूर्वे नहीं देखा, वह देखनेसे चित्तको समाधि होती है, ऐसा देवदर्शन किसीको होता है ? मुनि जो प्राप्त हुवे आहार-पाणी तथा सरसनीरस आहार और वस्त्र-पात्र जीर्णादिको समभावे भोगनेवाले तथा पशु, नपुंसक, स्त्री रहित शय्या भोगनेवाले ब्रह्मचर्यगुप्ति पालन करनेवाले, अन्प आहारभोजी, अल्प उपधि रखनेवाले, पांचों इन्द्रियों को अपने कब्जे करी हो, छे कायकी यतना करनेवाले इत्यादि जो श्रेष्ठ गुणधारकों सम्यग्दृष्टि देवका दर्शन होता है, उसीसे चित्त समाधिको प्राप्त होते हैं.