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मिति तीन गुप्ति यावत् ब्रह्मचर्य पालन करनेवाले आत्मार्थी, स्थिर आत्मा, आत्माका हित, आत्मयोगी, आत्म पराक्रम, खपक्षके पोषक, तथा पाक्षिक पौषधकारक, सुसमाधिवंत, शुक्लध्यान, धर्मध्यानके ध्याता, उन्होंके लिये जो दश चित्त समाधि के स्थान, पेस्तर प्राप्त नहीं हुवे ऐसे स्थान दश है, उसको श्रवण करो.
(१) धर्म-केवली, सर्वज्ञ, अरिहंत, तीर्थंकर, प्रणीत, नयनिक्षेप प्रमाण, उत्सर्गापवाद, स्याद्वादमय धर्म, जो नवतत्व, षद्रव्य आत्मा और कर्म आदिका स्वरुप चिन्तवनरुप जो धर्म, आगे (पूर्वे) नहीं प्राप्त हुवाको इस समय प्राप्त होनेसे वह जीव ज्ञानात्मा करके है. स्व समय, परसमयका जानकार होता है. जिससे चित्तसमाधि होती है. ऐसा पवित्र धर्मकी प्राप्ति होनेके कारण-सरल स्वभाव, निर्मल चित्तवृत्ति, सदा समाधि, दुर्ध्यान दूर कर सुध्यान करना, देव, गुरु के वचनोंपर श्रद्धा, शत्रु मित्रपर समभाव, पुद्गलोंसे अरुचि, धर्मका अर्थी, परिसह तथा उपसर्गसे अक्षोभित, इत्यादि होनेसे इस लोकमें चित्तसमाधि और परलोकमें मोक्ष सुखोंको प्राप्त करता है. प्रथम समाधिध्यान.
(२) संज्ञीजीवोंको उत्पन हो, उसे संज्ञीज्ञान अर्थात जातिसरण ज्ञान, जो मतिज्ञानका एक विभाग है. ऐसा ज्ञान पूर्वे न उत्पन्न हुवा, वह उत्पन्न होनेसे चित्तसमाधि होती है. कारण उस ज्ञानके जीरवे उत्कृष्ट नौसों ६००) भव संज्ञीपंचेंद्रियका