________________
(२) क्रियावादी-क्रियावादी आत्माका अस्तित्व मानते है. आत्माका हितवादी है. ऐसी उसकी प्रज्ञा है, बुद्धि है.
आत्महित साधनरुप सम्यग्दृष्टिपना होनेसे समवादी कहा जाते है. सर्व पदार्थोंको यथार्थपने मानते है. सर्व पदार्थोंको द्रव्यास्तिक नयापेक्षासे नित्य और पर्यायास्तिक नयापेक्षासे अनित्य मानते है. सत्यवाद स्थापन करनेवाले है, उन्होंकी मान्यता है कि यह लोक, परलोक अरिहंत, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव है. अस्तिरुप सुकृतका फल है, दुष्कृतका भी फल है, पुण्य है, पाप है. परलोकमें जीव उत्पन्न होते है. पापकर्म करनेसे नरकों और पुन्यकर्म करनेसे देवलोकमें उत्पन्न भी होते है. नरकसे यावत् सिद्धि तक सर्व स्थान अस्तिभाव है. ऐसी जिसकी प्रज्ञा, दृष्टि, छन्दा, राग, मान्यता है; वह महारंभी यावत् महा इच्छावाला है. तथापि उत्तर दिशाकी नरकमें उत्पन्न होता है. शुक्लपक्षी, स्वल्प संसारी भविष्यमें सुलभबोधि होता है.
नोटः-आस्तिक सम्यग्वादी होनेपर क्या नरकमें जाते है ? ( उत्तर)-प्रथम मिथ्यात्वावस्थामें नरकायुष बांधा हो, पीछेसे अच्छा सत्संग होनेसे सम्यक्त्वकी प्राप्ति हुइ हो. वह जीव नरकमें उत्तर दिशामें जाता है. परन्तु शुक्लपक्षी होनेसे भविष्यमें सुलभबोधि होता है.
इसी प्रकार प्रक्रियावादीयोंका मिथ्यामत, और क्रियाचादीयोंका सम्यक्त्वका जानकार हो, उत्तम धर्मकी अन्दर