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हुवा साधु असमाधि चित्तसे अस्थिर होता हो उसको स्थिर करे या मिथ्यात्वमें गिरते हुए को स्थिर करे. (साहित्य दे.) (४) स्वयं ( आप ) शांतपणे वर्ते और दूसरोंको वर्तावे. इति.
और भी आचार्यके शिष्यका ४ प्रकारका विनय कहा है. (१) साधुके उपगरण विषय विनयका ४ भेद.
(१) पहिलेके उपगरणका संरक्षण करे और वस्त्र, पात्रादि फुटा, तुटा हो उसको अच्छा करके वापरे ( काममें लावे ). ( २ ) अति जरुरत हो तो नवा उपगरण निर्वद्य लेवे. और जहांतक हो वहांतक अल्प मूल्यवाला उपगरण ले. (३) वस्त्रादिक फाट गया हो तो भी जहांतक बने वहांतक उसीसे काम ले. मकानमें ( उपासरे ) जीर्ण वस्त्र वापरे. बाहर आना-जाना हो तो सामान्य वस्त्र (अच्छा ) वापरे. इसी माफिक आप निर्वाह करे, परन्तु दूसरे साधुको अच्छा वस्त्र दे. (४) उपगरणादि वस्तु गृहस्थसे याच के लाया हो, उसमेंसे दूसरे साधुको भी विभाग करके देवे.
(२) साहिबीय विनयके ४ भेद.
(१) गुरुमहाराजके बुलानेपर तहकार करता हुवा नम्रतापूर्वक मधुर बचनसे बोले. (२) गुरुमहाराजके काममें अपने शरीरको यतनापूर्वक विनयसे प्रवर्तावे. (३) गुरुमहाराजके कार्यको विश्रामादि रहित करे, परन्तु विलंब न करे.