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। श्री रत्नप्रभाकर ज्ञानपुष्पमाला-पुष्प नं०६३ ।
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॥ श्री देवगुप्तसूरीश्वर सद्गुरुभ्यो नमः ॥
अयश्री शीघ्रबोध नाग २० वा। अथश्री दशाश्रुतस्कन्धसूत्रका संक्षिप्त सार.
(अध्ययन दश.) (१) प्रथम अध्ययन-पुरुष अपनी प्रकृतिसे प्रतिकूल आचरण करनेसे असमाधिका कारण होता है. इसी माफिक मुनि अपने संयम-प्रतिकूलं आचरण करनेसे संयमअसमाधिको प्राप्त होता है. जिसके २० स्थान शास्त्रकारोंने बतलाया है. यथा(१) आतुरतापूर्वक चलनेसे असमाधि-दोष. (२) रात्रि समय विगर पुंजी भूमिकापर चलनेसे असमा
धि दोष. (३) पुंजे तोभी अविधिसे कहांपर पुंजे, कहांपर नहीं पुंजे ... तो असमाधि दोष. (४) मर्यादासे अधिक शय्या, संस्तारक भोगवे तो अस० दो०