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उपशम वालोंके विपाकों तथा प्रदेशों मिथ्यात्व नहीं रहेता हैवास्ते पांच वारसे ज्यादा नहीं आते है। - दर्शन विषय दुसरी शंका । दर्शन देखना इसकों सामान्य ज्ञान कहते है । जिसमें इन्द्रिय निमत्त, और अनेन्द्रिय निमत्त, तो फिर चक्षुदर्शन अचक्षुदर्शन यह भेद करनेकि क्या आवश्यक्ता थी। मगर एसा भेद करना हो तो श्रोतदर्शन घणदर्शन रसदर्शन स्पर्शदर्शन मनदर्शन भि करनाथा क्योंकि इन्होंसे मितों सामान्य ज्ञान होता है यह शांका है।
समाधान-वस्तुका निर्देश दोय प्रकारसे किये जाते है (१) सामान्यतासे (२) विशेषतासे, यहा चक्षुदर्शनका निर्देश सामान्यता है और अचक्षुदर्शनका निर्देश विशषता है कारण चक्षुः दर्शनका ज्ञान चक्षुइन्द्रियसे ही होते हैं शेष च्यार इन्द्रिय और मनका ज्ञान है वह अचक्षु दर्शनका है ।
(३) चारित्र विषयशंका । सावध योगोंकि प्रवृतिसे निवृति होना उस्का नाम चारित्र है । जब सामायिक चारित्र ग्रहन करनेसे सावध योगोंसे निवृति होगई तो फीर छदोपस्थापनि चारित्र देनेकि क्या जरूरत है।
समाधान-चारित्रके दोय भेद करना यह व्यवहारनयवि अपेक्षा है कारण प्रथम निनके साधु रूजु जड है चरम जिनवे साधु वक्र और जड है उन्होंकों अस्वासना देनेके लिये दो मे बतलाये है, प्रथम सामायिक चरित्र देनेपर दोष लगनावेतो आतु रता न होने के लिये उन्होंको छदोपस्थापनिय चारित्र दोया जात है इसीसे भविष्य के लिये अस्थिरता न होय और क्षोभ रहेता है