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जानेका इरादा करे तो उसको अपनी पद्वी दुसरको दीयाः । बिगर जाना नहीं कल्पै, परंतु पद्वी छोडके सात पद्वीवालोंको पूछे, अगर आज्ञा दे, तो अन्य गच्छमें जाना कल्पै, आज्ञा नहीं देवे तो नहीं कल्पै.
(२०) आचार्य, उपाध्याय, स्वगच्छ छोडकर परगच्छमें जानेका इरादा करे, तो अपनी पद्वी अन्यको दीया बिना अन्य गच्छमे जाना नहीं कल्पै. अगर पद्वी दुसरेको देनेपरभी पूर्ववत् सात पद्वीवालोंको पूछे, अगर वह सात पद्वीधर आज्ञा दे, तो जाना कल्प, आज्ञा नहीं देवे तो जाना नहीं कल्पै. भावार्थ-अन्य गच्छके नायक कालधर्म प्राप्त हो गये हो पीछे साधु समुदाय बहुत है, परंतु सर्व साधुवोंका निर्वाह करने योग्य साधुका अभाव है, इस लीये साधु गणविच्छेदक तथा आचार्य महालाभका कारण जान, अपने गच्छको छोड उपकार निमित्त परगच्छमें जाके उसका निर्वाह करे. आज्ञा देनेवाले अन्य गच्छका आचार धर्म आदिकी योग्यता देखे तो जानेकी आज्ञा देवे, अथवा नहींभी देवे.
(२१) इसी माफिक साधु इरादा करेकि अन्य गच्छवासी साधुवोंसे संभोग ( एक मंडलेपर साथमें भोजनका क. रना ) करे, तो पेस्तर पूर्ववत् सात पद्वीधरोंसे आज्ञा लेवे, अगर आचारधर्म, क्षमाधमे, विनयधर्म अपने सदृश होनेपर आज्ञा देवे, तो परगच्छके साथ संभोग कर सके, अगर आज्ञा नहीं देवे, तो नहीं करे.