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( २८) ओकड्ड आसन करना, ( २६ ) लगड आसन करना, (३० ) आम्रखुजासन करना, ( ३१ ) उर्ध्व मुख कर सोना, (३२) अधोमुख कर सोना, (३३) पांव उर्च करना,
( ३४ ) ढींचणोंपर होना-यह सर्व साध्वीके लीये निषेध कीया है. वह अभिग्रह-प्रतिज्ञाकी अपेक्षा है. कारणप्रतिज्ञा करने के बाद कितने ही उपसर्ग क्यों नहीं हो ? परन्तु उससे चलित होना उचित नहीं है. अगर असे आसनादि करनेपर कोइ अनार्य पुरुष अकृत्य करनेपर ब्रह्मचर्यका रक्षण करना आवश्यक है. बास्ते साध्वीयोंको असे अभिग्रह करनेका निषेध कीया है. अगर मोक्षमार्ग ही साधन करना हो तो दुसरे भी अनेक कारण है. उसकी अन्दर यथाशक्ति प्रयत्न करना चाहिये.
(३५) साधु उक्त अभिग्रह-प्रतिज्ञा कर सकते है. . (३६) साधु गोडाचालक ही लगाके बेठ सकता है.
(३७) साधीयोंको गोडाचालक ही लगाके बेठना नहीं कल्प.. ... (३८) साधुवोंको पीछाडी पाटो सहित (खुरसीके आकार) पाटपर बेठना कल्पै.